वो ताड़ का पेड़ अब भी है
कल उसके ऊपर वो नशा करने वालों
को अमृत पिलाने का कार्य करने वाला
वो
गरीब घर का एक आम आदमी
बड़ी चपलता से ,निर्भयता से ऊंचाई
पर पहुँच जाता था
और हम उसके इस करतब को निहार
कर प्रस्सन होते थे
सोचते थे की काश हम भी
उस ऊंचाई पर चढ़ नीचे की दुनिया को
देख पाते पर हमें क्या पता था की
उंचाई पर चढ़ने के लिए बहुत साहस का होना
जरूरी है
आज उस ताड़ के पेड़ के बगल में एक ऊँचा इमारत खड़ा है और
हम आसानी से उसके मुंडेर पर खरे हो
उसपर बैठे पंछियों को निहारा करते हैं
और आज उस तार के पेड़ को को हम चुनौती देते हैं
हम उसके ऊंचाई तक पहुँचने के लिए
सीढ़ी का इस्तेमाल करते हैं
और वो ताड़ी बेचने वाला अपने पैरों और हाथों का ....
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