इससे अच्छा ‘कालिख’ पोतो इसपे
ये चुप हो जायेगा
दर्पण में कुछ धूल जमी थी
अंतर्मन बोला -साफ करूँ
चमकाऊँ कुछ
बढे रौशनी
दूर -दूर तक फैले
देख रौशनी वे भी जागे
पड़े अभी जो मैले
कुछ कुरेद कर देखा मैंने
‘बिम्ब’- हमारा-बड़ा ‘भयावह’
कुछ कहता था
अट्टहास कर हमपे हँसता
पल छिन तो मै लड़ा जोर से
गुण अपना बतलाया
उसने मेरा ‘भूत’ दिखाकर
‘गूंगा’ मुझे बनाया
‘कलई’ – ‘पोल’ खोलते भाई
‘वर्तमान’-से आगे आया
‘डरा’ बहुत मै
‘निज’ चेहरे से
कहीं न दुनिया देखे
कहीं उठा न लें वे पत्थर
जो मुझको हैं ‘पूजे’
कहीं अगर ये साफ़ हो गया
‘स्वच्छ -छवि’ दिखलायेगा
इससे अच्छा ‘कालिख’ इसपे-
‘पोतो’ - ये चुप हो जायेगा
अगर तोड़ता उसको मै तो
बनते कई ‘हजार’ !
इससे अच्छा ‘गाड़’ इसे मै
घूमूँ अब दरबार !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
10.04.2011
2 टिप्पणियाँ:
सुन्दर...सुन्दर..सुन्दर...
धन्यवाद डॉ श्याम जी नमस्कार - आज आप ने बहुत छोटी सी प्रतिक्रिया में निपटा दिया क्या बात है मै तो अख्तर खान भाई द्वारा आप का जीवन दर्शन पढ़ रहा था बहुत अच्छा लगा -
धन्यवाद आप का आइये अपने सुझाव व् समर्थन ले हमारे पोस्ट , ब्लॉग पर भी
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
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Thanks for your valuable comment.