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इससे अच्छा ‘कालिख’ पोतो इसपे ये चुप हो जायेगा

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on सोमवार, 18 अप्रैल 2011 | 11:53 am


इससे अच्छा कालिख पोतो इसपे
ये चुप हो जायेगा

दर्पण में कुछ धूल जमी थी
अंतर्मन बोला -साफ करूँ
चमकाऊँ कुछ
बढे रौशनी
दूर -दूर तक फैले
देख रौशनी वे भी जागे
पड़े अभी जो मैले 
कुछ कुरेद कर देखा मैंने 
बिम्ब’- हमारा-बड़ा ‘भयावह 
कुछ कहता था 
अट्टहास कर हमपे हँसता 
पल छिन तो मै लड़ा जोर से  
 गुण अपना बतलाया
उसने मेरा भूत दिखाकर
गूंगा मुझे बनाया
कलई – ‘पोल खोलते भाई
वर्तमान-से आगे आया
डरा बहुत मै
निज चेहरे से
कहीं न दुनिया देखे
कहीं उठा न लें वे पत्थर
जो मुझको हैं पूजे
कहीं अगर ये साफ़ हो गया
स्वच्छ -छवि दिखलायेगा
इससे अच्छा कालिख इसपे-
पोतो - ये चुप हो जायेगा
अगर तोड़ता उसको मै तो
बनते कई ‘हजार !
इससे अच्छा गाड़ इसे मै
घूमूँ अब दरबार !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
10.04.2011
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2 टिप्पणियाँ:

shyam gupta ने कहा…

सुन्दर...सुन्दर..सुन्दर...

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

धन्यवाद डॉ श्याम जी नमस्कार - आज आप ने बहुत छोटी सी प्रतिक्रिया में निपटा दिया क्या बात है मै तो अख्तर खान भाई द्वारा आप का जीवन दर्शन पढ़ रहा था बहुत अच्छा लगा -
धन्यवाद आप का आइये अपने सुझाव व् समर्थन ले हमारे पोस्ट , ब्लॉग पर भी
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

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