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नौवां दिन - माता सिद्धिदात्री का - आइये इनकी चरण वंदना करें

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on मंगलवार, 12 अप्रैल 2011 | 2:22 pm


नौवां  दिन - माता सिद्धिदात्री का - आइये इनकी चरण वंदना करें 
             "देवी मन्त्र"
या देवी सर्व भूतेषु माँ रूपेण संस्थिता 
या देवी सर्व भूतेषु शक्ति  रूपेण संस्थिता 
या देवी सर्व भूतेषु बुद्धि रूपेण संस्थिता 
या देवी सर्व भूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता  
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः




माँ दुर्गा का नौवां स्वरुप माता सिद्धिदात्री का है . आज इस नवरात्रि पावन  
 पर्व का अंतिम दिन जिसे हम नवमी के नाम से जानते हैं पूजते हैं . इनके साथ आठ सिद्धियाँ जुडी हुयी हैं जिनकी प्रदाता माँ दुर्गा हैं और अपने प्रिय भक्तों पर अपना आशीष बरसा जाती हैं वे हैं अनिमा, महिमा गरिमा , लघिमा ,प्राप्ति, प्राकर्न्य ,ईशित्व, और वशित्व. जिनका वर्णन विषद है और संक्षेप में हम यह समझ लें कि इससे हमें हर चीज क़ी प्राप्ति होती है चाहे वह गरिमा , महिमा, यहाँ तक कि ईश्वर क़ी  भी प्राप्ति संभव है,माँ को हम प्रेम से भजें और और इनकी सिद्धियों का प्रसाद हम पायें तो आज के इस तप्त संसार में भी हम शांति क़ी प्राप्ति कर अपने मन को शीतल बना कर सब कुछ शीतल कर एक अनूठा योगदान दे सकते हैं - माँ शक्ति इन सभी आठों सिद्धियों क़ी प्रदाता है ऐसा कहा गया है ' देवी पुराण में कि हमारे सर्व शक्तिमान प्रभु शिव ने भी ये शक्तियां माँ  शक्ति कि आराधना पूजा करके प्राप्त की.
  माँ शक्ति की कृपा से शिव जी का आधा शारीर माँ शक्ति का हो गया था और इसी से हमारे पूज्य शिवजी का एक नाम अर्धनारीश्वर  पड़ गया और विख्यात हो गया
 चक्र , गदा, शंख , पुष्प, माँ के कर में सुशोभित है आओ माँ की सच्चे मन से आराधना करें उन्हें लाल चुनरी नारियल सिन्दूर धूप दीप ज्योत जला के प्रसन्न करें और चूड़ियाँ भी उन्हें सुहाग की जो भाती हैं चढ़ाई जाती है



माँ अपने इस नौवें स्वरुप सिद्धिदात्री में सिंह पर आरूढ़ हैं और चार भुजा धारिणी हैं .माँ शक्ति सभी अष्ट सिद्धियों की प्रदाता हैं हमें यह हमेशा याद रख अपनी शक्ति का वरदान येन केंन प्रकारेण माँ की आराधना कर हासिल करना ही है . ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार १८ प्रकार की प्राप्तियां बताई गयी हैं जो हैं अनिमा, महिमा, गरिमा ,लधिमाप्राप्ति, प्राकाम्यईशित्व , वशित्वसर्वाकमल सधित्यसर्वग्यनात्व,दुर्श्रवना,पर्कायाप्रवेशन,वाकासिद्धि,कल्पवृशात्व , श्रृष्टि , सम्हार्कारान्सामार्थ्य , अमरत्व , सर्वन्ययाकत्व , भावना और  सिद्धि . अधिकतर कमल पर विराजमान प्रायः चार भुजा वाली , और  अलग अलग तरह की सिद्धियों की प्रदाता माँ अपने भक्तों पर इन दिनों और भी मेहरबान रहती हैं और हम यदि शुद्ध मन से उनका पूजन आवाहन करें तो माँ शक्ति हमारे अन्दर एक अद्भुत शक्ति दे ही जाती है , माँ सिद्धिदात्री का तीर्थ स्थान हिमालय की नंदा पर्वत श्रेणियों , पहाड़ियों में माना जाता हैं -हमारी नारी समाज इन नौ  दिनों में माँ का व्रत रख कन्याओं को भोज करा उनका आशीष पाती हैं और अपने साथ साथ हम में  भी शक्ति का संचार करती हैं -हे माँ जगद जननी दे हम सब को आशीष की इसी नवरात्री सा पावन हमारा हर दिन और हर रात्रि बना रहे. माँ अन्नपूर्णा हमारे हर संताप पाप रोग शोक दूर भगाती हैं हे माँ तुझे कोटिशः नमन

माँ का वर्णन करना वैसे तो हम जैसे  क्षुद्र जीव द्वारा कदापि संभव नहीं फिर भी उनके गुण का बखान करना गुणगान करने के हक़दार तो हम हैं ही किसी भी प्रकार की त्रुटियों के लिए कृपया क्षमा करें 
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
12.04.2011
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5 टिप्पणियाँ:

तरुण भारतीय ने कहा…

आपको भो माता रानी शक्ति दे ...........

तरुण भारतीय ने कहा…

आपको भो माता रानी शक्ति दे ...........

shyam gupta ने कहा…

-- श्रिष्टि जब अलिन्गी थी और ब्रह्मा किसी स्वयंचलित श्रिष्टि-जनन तन्त्र की खोज नहीं कर पारहे थे तब परब्रह्म विष्णु की इच्छारूपी-आदि-शक्ति की प्रेरणा से आदि-शम्भु-रुद्र.. स्वयं व अपनी योगमाया के सम्मिलित रूप में अर्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए और स्वयं को नर व नारी दो रूपों में विभाजित करके ...श्रिष्टि में मैथुन द्वारा प्रजनन की ओटोमेटिक प्रणाली का सूत्रपात किया--इसीलिये शिव का एक नाम अर्ध्नारीश्वर है...

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

तरुण "भारतीय" जी पहले तो भारतीय होने के नाते आप का स्वागत हैं अच्छा लगा -माँ अन्नपूर्णा आप सब को -हमारे सभी जन समुदाय को

सुन्दर विचार सुबुद्धि दें आपकी शुभ कामनाओं के लिए धन्यवाद

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

Quote:Ardhnarishwar ki kalpana kahti hai, do virodhi dhruvo ko ek sath bandhna, do virodhi shaktiyo ko ek sath rakhna taki srijan ho sake. Ek vesh sadhu aur dusra rajrani yane bhog ke sath rahte hua bhi apne aap ki pahchan rakhna.

डॉ श्याम गुप्ता जी नमस्कार व्याख्या इसकी जितनी की जाये कम है कितने काव्य पुराण भरे हैं सब अपने ढंग से समझाते है कोई खुला -खुलाया कोई थोडा आँचल ढँक कर आप के विचार भी प्रखर हैं जो भी हो आप का स्वागत हैं अच्छा लगा -माँ अन्नपूर्णा आप सब को -हमारे सभी जन समुदाय को सुन्दर विचार सुबुद्धि दें -सब कुछ मंगल मय हो - धन्यवाद

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

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