हिन्दू कट्टर कैसे........... ? मेरी नजर में कट्टरता....
लोग कहते है की कट्टरता हमारे लिए घातक है पर इस बात को मैं नहीं मानता , कट्टरता ही एक ऐसा रास्ता है जो सारे विवाद को नष्ट कर सकता है. पर कट्टरता क्या होती है शायद यह किसी को पता नहीं है, और जो कट्टरता हमारे समाज को विध्वंस कर रही है, वह रूढ़िवादिता में सिमटी एक ऐसी कट्टरता है जो हिन्दू धर्म को चौपट कर रही है. जब लोग कहते है की इस्लाम तलवार के दम पर बना एक ऐसा धर्म है जो लोंगो को भयाक्रांत करता है. जब मैं छोटा था तो मैं भी इस बात को मानता था. पर धीरे-धीरे जब मैं समाज से जुड़ता गया तो देखा और महसूस किया की कोई भी धर्म सिर्फ डर या तलवार के दम पर इतना विशाल नहीं हो सकता. कोई न कोई बात इस्लाम में जरुर है जो दिनों दिन आगे बढ़ता गया. आखिर इस बात का राज़ क्या है. जब इसकी गहराई में गया तो पाया की हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियाँ और छुआछूत तथा इस्लाम में समावेश प्रेम ने ही इस्लाम को मानने वालो में इजाफा किया है. यदि देखा जाय तो हिन्दू कोई धर्म नहीं बल्कि एक जीवन शैली है, हिन्दू धर्मशास्त्र जीवन जीने के नियम है. पर हिन्दुओ ने उन नियमो को मानना छोड़ दिया है. " यदि यह कहे की आज मुसलमान उन नियमो को अधिक मानता है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. जो काम और जिन नियमो आदर्शो का पालन मुसलमान करता है यदि हिन्दू उन्ही नियमो का पालन करता तो आज के भारत में उतने मुसलमान कदापि नहीं होते जितने आज की तारीख़ में हैं. " जिस तरह "गीता" एक सम्पूर्ण जीवन शैली है. उसी प्रकार "कुरान" सभी हिन्दू धर्म शाश्त्रो का सार है. कुरान में लिखी लगभग सभी बाते किसी न किसी हिन्दू धर्म शास्त्र में मिल जाएगी. जो आपसी प्रेम मुसलमानों में है वह हिन्दुओ में रह ही नहीं गया है. जब मुसलमान मस्जिद में नमाज़ पढने जाता है तो नमाज़ पढने के बाद एक दुसरे से गले मिलता है, वह यह नहीं देखता की उसकी बगल में खड़ा व्यक्ति किस जाती है पर जब हिन्दू मंदिर में पूजा करने जाता है तो छोटी जाती से दुरी बना लेता लेता है क्योंकि इश्वर के दरबार में भी उसे छुआछूत की बीमारी जकड़े रहती है. वहा भी धर्म भ्रष्ट होने का भय बना रहता है. मैं पूछना चाहता हूँ हिन्दू धर्म के उन ठेकेदारों से क्या इसी दम पर तुम हिन्दू धर्म को मजबूत बनाओगे. कट्टर बनो पर धर्म के प्रति, धर्म जो शिक्षा देते है उन पर अमल करो. फिर तो सरे विवाद ही ख़त्म हो जायेंगे.
पर यहाँ पर हम धर्म की चर्चा करने नहीं बैठे है. आज हम हिन्दुओ की कथित कट्टरता पर बात करेंगे जिस कट्टरता ने हमेशा हिन्दुओ को कमजोर करने का काम किया है. आज के परिवेश में यदि किसी हिन्दू से पूछा जाय की वह किस जाती का है तो कोई भी हिन्दू यह नहीं कहेगा की वह हिन्दू है. ब्राह्मन, ठाकुर, यादव, चमार, पासी { माफ़ करना भाई कोई एस सी एस टी मत लगवा देना } गड़ेरिया, कोइरी, बनिया आदि आदि जाती बताएगा...... और यही सवाल यदि किसी मुसलमान से किया जाय तो वह सिर्फ मुसलमान कहेगा, यह है धर्म के प्रति सच्ची आस्था , जातिया मुसलमानों में भी बनी है पर उससे उनका समाज नहीं टूटता, वहा पर जातियां खान-पान व व्यवहार को नहीं बाँटती, वहा पर छुआ छूत नहीं है. यदि कही दिखता भी है तो उसका कारण जातियां नहीं होती, जबकि हिन्दू धर्म में ऊँची नाक वाले छोटी जाति के यहाँ खाना तो दूर पानी पीना भी पसंद नही करेंगे. छुआ छूत का कैंसर हमारे अन्दर इतना समां गया है. की उसे बाबा रामदेव का योग भी दूर नहीं कर सकता. हिन्दू शिक्षित भले ही हो पर धार्मिक कुरीतियों में जकड़कर इतना असहाय हो चुका है की वह छटपटाने के बावजूद उस बंधन से निकलना नहीं चाहता. और यही कारण धीरे-धीरे हिन्दू धर्म को कमजोर कर रहा है.
जिन मुसलमानों पर हम अंगुलिया उठाते है. सच्चा प्रेम हमें वही दिखाई देता है. हिन्दू आज यदि उसी प्रेम को अपनाये होते तो हिन्दू समाज का बंटवारा नहीं होता, जाति पाति के आधार पर हम बंटे नहीं होते. मै आज तक मुसलमानों की जितनी भी पार्टियों में गया वह पर जाति के आधार पर सम्मान पाते किसी को नहीं देखा. चाहे पठान हो या अंसारी, जिसमे जितनी क़ाबलियत वह उतना ही सम्मान का अधिकारी., हम किसी भी मुसलमान भाई के यहाँ गए. सभी जितने प्रेम से मिलते हैं. क्या उतने ही प्रेम से हम उनसे मिलते है. भले ही लोग कहे मिलते है पर ऐसा नहीं है. आज भी हिन्दू की बड़ी जातियों में मुसलमानों के लिए या हिन्दू छोटी जातियों के लिए अलग से बर्तन निकाल कर रखे जाते है. इस्लाम इतना कमजोर नहीं है की वह सिर्फ बर्तनों के आधार पर खतरे में पड़ जाय. पर हिन्दू धर्म खतरे में पड़ जाता है. जब हमारा धर्म इतना कमजोर है. कि सिर्फ छूने और खाने से कमजोर हो जाता है और भ्रष्ट हो जाता है तो ऐसे धर्म का मालिक कौन हो सकता है.
मेरी नजर में जो मुसलमान है वह मुसलमान मैं भी हूँ. जी हाँ जनाब हरीश सिंह एक सच्चा मुसलमान है.मुसलमान का मतलब जानते हैं. " कुरान में केवल मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल हुआ है. जिसके माने है, एक वो शख्स जो अपनी तमाम इच्छाओ को और अपने आप को खुदा { ईश्वर} के आगे नतमस्तक कर दे.
मेरी नजर में मुसलमान वह है जो "
जिसका सम्पूर्ण ईमान अपने ईश्वर अपने परवरदिगार के प्रति हो. और यही भाव हिन्दुओ का भी होना चाहिए, निश्चित रूप से इस सृष्टी का संचालन करने वाला एकमात्र वाही परमात्मा है जिसे मुसलमान खुदा कहता है, ईसाई गाड कहता है या हिन्दू भगवान कहता है. जिसने भी सम्पूर्ण मानव जाति को इस पृथ्वी पर भेजा है वह एक ही है चाहे उसे हम किसी भी नाम से पुकारे. यदि ऐसा नहीं होता हमारे शरीर एक जैसे नहीं होते, हमारे खून का रंग एक नहीं होता बल्कि कुछ न कुछ अलग जरूर होता. हरीश सिंह एक सच्चा मुसलमान भी है और हिन्दू भी है. क्या फर्क पड़ता है. हम ईश्वर के प्रति समर्पित है. इसीलिए प्रेम कि भाषा बोलता है पर कुछ लोंगो को प्रेम कि यह भाषा समझ में नहीं आती. ईश्वर कि बनायीं हुई इस अनमोल कृति से प्रेम करना सीखो बंधुओ. कमियां सभी में होती है क्योंकि कोई मानव खुदा नहीं है, यदि समाज को विवाद मुक्त करना है तो जाति के आधार पर धर्म के आधार पर इन्सान को इंसानों से मत बांटो, यदि यह कोई मुसलमान यह समझे कि उसने हिन्दुओ की बुराई करके या भगवान को गाली देकर कोई तीर मार लिया या हिन्दू यह समझे की उसने मुसलमानों को गाली देकर या खुदा को गाली देकर जग जीत लिया तो यह बेवकूफी और पागलपन के सिवा कुछ नहीं है. समाज से विवाद ख़त्म करना है उंच-नीच, धर्म-जाति, हिन्दू मुसलमान की बातों को छोड़कर प्रेम करना सीखो. खुद के अन्दर खो रहे इन्सान को देखो तभी मानव जाति का भला हो सकता है.
2 टिप्पणियाँ:
hrish bhaai achchaa chintan hai lekin achche or bure dono dhrmon me hain kyonki dhrm ke naam par khuli dukanon or rajniti ne sb men kdvaaht ghol di hai aao aap or hm milkar is ka suddhikaran karen bhtrin chintn ke liyen aek bar fir bdhaai. akhtar khan akela kota rajsthan
हरीश भाई :
कई बार आप के लेखों में हिन्दू विरोध झलकता है मगर मैं औरों की तरह आप को मुल्ला हरीश खान नहीं कहूँगा..
मेरे कुछ प्रश्न हैं..कृपया लेख लिखकर हो सके तो स्पस्ट कर दें..
... माना मैंने हिन्दू धर्म बहुत ख़राब है..मैं इस्लाम स्वीकार करना चाहता हूँ..कौन सा इस्लाम स्वीकार करूँ..
१ अलकायदा का इस्लाम
२ तालिबान का इस्लाम
३ पाकिस्तान का इस्लाम
४ हिंदुस्तान के सिमी और कश्मीर का इस्लाम
५ या एक सीधे साधे सच्चे भारतीय मुस्लमान का इस्लाम जिसको इस मार काट से लेना देना नहीं है...मगर इस्लामिक विश्व बहुमत उसको गद्दार कहता है...और भारत में वो अपने कुछ गद्दार बंधुओं के कारण शंका की दृष्टि से देखा जाता है???
....आप को वर्ण व्योस्था बुरी लगती है ..
१ क्या आप को लगता है वर्ण व्योस्था वही थी जिसका विकृत रूप कालांतर में हम देख रहें है और आप परोस रहें है..अगर हो सके तो पढ़ें क्या वर्ण व्योस्था प्रासंगिक है ?? क्या हम आज भी उसे अनुसरित कर रहें हैं??
२ क्या आप पूरे यकीन और प्रमाण के साथ कह सकतें है की इस्लाम में जातिवाद वर्णवाद नहीं है...
और हाँ हरीश भाई:
आप जैसे अनुभवी व्यक्ति से कश्मीरी पंडितो के विस्थापन का कारण एवं कारकों पर एक लेख मिल जाए तो इस पापी हिन्दू का जीवन धन्य हो जाए...
आप के जबाब की प्रतिच्छा रहेगी
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.