हे भारत! तुम मत भूलना कि तुम्हारी स्त्रियों का आदर्श सीता,सावित्री,दमयंती है;मत भूलना कि तुम्हारे उपास्य सर्वत्यागी उमानाथ शंकर है ;मत भूलना कि तुम्हारा विवाह , धन और जीवन इन्द्रिय - सुख के लिए-अपने व्यक्तिगत सुख के लिए-नही है , मत भूलना कि तुम जन्म से ही 'माता' के बलिस्वरूप रखे गए हो;तुम मत भूलना कि तुम्हारा समाज उस विराट महामाया की छाया मात्र है ; मत भूलना कि नीच,अज्ञानी .दरिद्र, इत्यादि तुम्हारे रक्त है , तुम्हारे भाई है . हे वीर ! साहस का आश्रय लो . गर्व से कहो कि मई भारतवासी हूँ और प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है ; फिर चाहे वो ब्राह्मण हो या चांडाल , भारतवासी मेरे प्राण है, भारत की देव-देवियाँ मेरे इश्वर है , भारत का समाज मेरे बचपन का झूला,जवानी की फुलवारी और मेरे बुढापे की काशी है.भाई, बोलो भारत की मिटटी मेरा स्वर्ग है, भारत के कल्याण से मेरा कल्याण है; और रात दिन कहते रहो-"हे गौरीनाथ ,हे जगदम्बे ! मुझे मनुष्यत्व दो, माँ! मेरी दुर्बलता और कापुरुषता दूर कर दो. माँ मुझे मनुष्य बना दो."
स्वामी विवेकानंद जी का उपरोक्त कथन को चरितार्थ करने के लिए हम सब वचनबद्ध है. आइये एक प्रबुद्ध भारत बनाने में हम अपना यथासाध्य योगदान दे और भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेके.
जय भारत ,जय अन्ना हजारे
1 टिप्पणियाँ:
चरित्र मानवीय-मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता से सवंरता है। चरित्रवान के लिए आत्म-निरीक्षण और अवगुणों से छुटकारा पहली शर्त है। संयम और त्याग की आँच पर ख़ुद को तपाना पड़ता है। हरामख़ोरी से बचना होता है। दूसरों के साथ वही व्यवहार करना पड़ता है जैसा हम अपने लिए दूसरों से चाहते हैं। चरित्र बाहरी दिखावा नहीं अभ्यांतरिक शुद्धता है। चरित्र व्यक्ति के आचरण और व्यवहार से झलकता है। नेता जी सुभाषचंद बोस, सरदार भगतसिंह, रामप्रसाद ’बिस्मिल’ आदि ने कभी सोचा न होगा कि जिस आजादी को प्राप्त करने के लिए वे जीवन की कुर्बानी दे रहे हैं। वह भ्रष्टाचार के कारण इतना पतित हो जायगी। भ्रष्टाचार से परहेज़ करने का पाठ सभी प्रकार के सार्वजनिक मंचों से खूब पढ़ाया जाता है परन्तु यथार्थ में क्या स्थिति है वह किसी से छुपी हुई नहीं है।
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मनुष्य बनने पर जोर कहाँ दिया जा रहा है। भारत में राजनैतिक सत्ता के गुलगुले जाति-धर्म के गुड़ से बनते हैं। यदि गुड़ खराब होगा तो उससे बना हर पकवान खराब होगा। गुड़ को शोधित किए बिना अच्छे परिणाम की कल्पना करना व्यर्थ है।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
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