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हे ‘माँ’ तू है कितनी ‘भोली’-‘दर्द’ हुआ तो चुप के ‘रो’ ली

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on रविवार, 10 अप्रैल 2011 | 10:08 am


 हेमाँ’ तू है कितनीभोली’-‘दर्द’ हुआ तो चुप केरो’ ली
हेमाँ’ !!  मुझको क्षमा करे तू
मुझको गुस्सा तुझ पर आता !
कुछ भी यहाँ बनाती जाती
अर्थ -हीन है -रस -विहीन जो
आग भरी है जिनके दिल में
‘होली’ उन्हें जलाना आता
रंग जिन्हेंकाला’ ही भाता
जो जाने हीरा’-मोती’
‘कौआ’   -‘कोयला’ बस मन भाता
‘धवल ‘–‘चांदनी’-‘श्वेत’-‘ दिवस’ ना
‘अँधियारा’-‘रजनी’- ही भाता
तोड़ फोड़ करपुष्पों’ को वे
‘राह’ में फेंके जाते
रोज एकफुलवारी’ नोचे
सभा  मेंनाच’- ‘नचाते’
‘चीर’-‘हरण’ कर घूमे जाता  
नहींकृष्ण’ अब- ‘कंस’ कहे -है
हँस -हँस  घूमे
छुरा’ घोंप केसीने’ में
वो अपनीमाँ’ के
‘बाप’ के अपने
‘बदनाम’ करे है
‘मानवता’ को लूटे
चोर-सिपाही तंत्री मंत्री 
‘घर’ –‘आँगन’ से ‘संसद’ तक 
जो खड़ा हुआ हैरक्षक’-‘भक्षक’ 
‘माँ’   तूने उसे बनाया 
‘पाल’ –‘पोष’  कर 'आँचल' अपने
तूनेदूध’ पिलाया 
‘गढ़ने’ में क्या ‘भूल’ हुयी माँ
कहाँ –कभी- क्या तुमने सोचा??



 वो 'त्रिशूल' क्यों आज 'शूलहै
याद करो कुछबचपन’ के दिन
‘आग’ लगाया था उसनेघर’
बढ़ी नदी में कूदा
गुडिया तोड़फेंक’ देता वो
कभी जलाताहोली’
बिन- मौसम के बरस वो जाता
थाली देता फेंक
उनकी जेब थी खाली होती
नौकर पर लगती थी चोरी
‘लात’ मारता था जब तुझको 
‘दर्द’ तुम्हे था होता ??
कहती थीअनजान’ तू उसको 
बड़ाभरम’ ये होता
‘कान’ पकड़ ना उसे सिखाया
तूने तो बसचाँद’ दिखाया
‘लोरी’ गा-गा उसे सुलाया
हेमाँ’ तू है कितनी भोली !!
‘पुचकारे’ -  गोदी’ में भर के
"दर्द' हुआ तो चुप के –‘रो’ ली !!
मै हूँ तेरालाल’ वही माँ
लौट नहीं अब पाऊँ !!
गुस्सा तुझ पर मुझको आता
अब ना कुछ कर पाऊँ 
‘काटे’ सेकदली’ फले
कैसे मै समझाऊँ !!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
..२०११
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2 टिप्पणियाँ:

mridula pradhan ने कहा…

"दर्द' हुआ तो चुप के –‘रो’ ली !!
bhawbhini...behad sundar.

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

आदरणीय मृदुला जी नमस्कार आप की प्यारी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद माँ की ममता होती ही ऐसी है जो मन को छू लेती है यही तो हमें जागरूक रहना है की वह विगाड़ न दे हमारे दुलार ही दुलार से धन्यवाद

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

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