समुद्र के किनारे परे वो सीप
समुद्र के किनारे परे वो सीप
आते हैं समुद्र के लहरों से निकलकर
चुनता है कोई उसे
पिरोता है मालों में
कोई ले जाता है उसकी सुन्दरता से मुग्ध होकर
फिर बढ़ाते हैं वो शोभा घर की
वो सीप जो कभी किसी जीव का रक्षा कवच था
आज शोभा बढा रहा है किसी के घर का
अपने पालक होने का अस्तित्व निभाकर उसने
अब दुसरे कर्त्तव्य को धारण कर लिया है
पर उसे तराशने वाला वो माला पिरोने वाला
वो उस सीप के लिए एक इश्वर है
जो की उसमे एक नव जीवन देता है
एक पहचान देता है
उस सीप को जिसे समुद्र की लहरें कभी रेत तो कभी पानी
के बीच कुदेरेते रहते हैं....इस जीवन के तरह जहाँ मानव एक सीप है
और पहचान की तलाश में भटक रहा है सच और झूठ के खेल के बीच ..
इंतज़ार है इश्वर का...
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5 टिप्पणियाँ:
सुन्दर अभिव्यक्ति।
अच्छी विचारधारा ...
vandana ji
shyam ji
aapka bahutt aabhaar..
good wishes
सुन्दर अभिव्यक्ति।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
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Thanks for your valuable comment.