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समुद्र के किनारे परे वो सीप

Written By नीलांश on शनिवार, 23 अप्रैल 2011 | 11:58 am


समुद्र के किनारे परे वो सीप

समुद्र के किनारे परे वो सीप 
आते हैं समुद्र के लहरों से निकलकर
चुनता है कोई उसे 
पिरोता है मालों में
कोई ले जाता है उसकी सुन्दरता से मुग्ध होकर 
फिर बढ़ाते हैं वो शोभा घर की 
वो सीप जो कभी किसी जीव का रक्षा कवच था 
आज शोभा बढा रहा है किसी के घर का 
अपने पालक होने का अस्तित्व निभाकर उसने 
अब दुसरे कर्त्तव्य को धारण कर लिया है 
पर उसे तराशने वाला वो माला  पिरोने वाला 
वो उस सीप के लिए एक इश्वर है
जो की उसमे एक नव जीवन देता है 
एक पहचान देता है


उस सीप को जिसे समुद्र की लहरें कभी रेत तो कभी पानी
के बीच कुदेरेते रहते हैं....इस जीवन के तरह जहाँ मानव एक सीप है 
और पहचान की तलाश में भटक रहा है सच और झूठ के खेल के बीच ..
इंतज़ार है इश्वर का...

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5 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति।

shyam gupta ने कहा…

अच्छी विचारधारा ...

नीलांश ने कहा…

vandana ji
shyam ji
aapka bahutt aabhaar..

good wishes

बेनामी ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति।

बेनामी ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति।

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