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कुंडलिया ----- दिलबाग विर्क

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on शनिवार, 23 अप्रैल 2011 | 11:37 am

बेटे जैसी बेटियां , कब समझोगे आप
करके हत्या भ्रूण की , क्यों करते हो पाप .
क्यों करते हो पाप ,बन बैठे हो कसाई
बिन बहना भैया कि , सूनी होगी कलाई .
कहत 'विर्क' कविराय , अगर हम अभी न चेते
बहुएँ   मिलेंगी   नाहिं , ठूंठ  से  होंगे  बेटे .

                      * * * * *
                            ----- साहित्य सुरभि -----

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2 टिप्पणियाँ:

Asha Lata Saxena ने कहा…

आपने सही कहा है |बिना बहिन भाई अधूरा है |बिना स्त्री पुरुष भी अधूरा है |अच्छी रचना के लिए बधाई
आशा

बेनामी ने कहा…

अच्छी रचना

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