नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » » क्या है जन-लोकपाल क़ानून : जनता को बताओ तो सही

क्या है जन-लोकपाल क़ानून : जनता को बताओ तो सही

Written By Swarajya karun on शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011 | 11:54 pm

                   
         भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए जन-लोकपाल विधेयक पारित कराने और कठोर क़ानून बनाने की अन्ना हजारे साहब की मांग  सौ फीसदी जायज है. देश की जनता आज वाकई भ्रष्टाचार से बेहद परेशान है. महंगाई और बेरोजगारी का एक बड़ा कारण भी यह भ्रष्टाचार ही तो है. यही कारण है कि जन-लोकपाल क़ानून बनवाने के लिए अन्ना साहब के आंदोलन को भारी जन-समर्थन मिला.  उनका सत्याग्रह तो दिल्ली में चल रहा था ,लेकिन उनके पक्ष में हर राज्य के बड़े से बड़े शहर और छोटे से छोटे कस्बे तक समर्थन का प्रतीकात्मक सिलसिला चलता रहा . देश-हित के  उनके  किसी भी विचार से शायद कोई   भी  असहमत नहीं होगा , फिर भी आम सहमति के लिए ज़रूरी है कि वे अपने इस  एजेंडे को जनता के बीचऔर भी ज्यादा व्यापक रूप से प्रचारित करें ताकि सब लोग ठीक-ठीक जान सकें कि यह जन-लोकपाल क़ानून आखिर है क्या ? उनके इस एजेंडे को दिल्ली में मिले भारी जन-समर्थन में आम जनता का उत्साह  वाकई  बहुत अधिक था ,लेकिन अगर क़ानून बनवाना है तो सिर्फ उत्साह जताने से काम नहीं चलेगा .प्रस्तावित क़ानून के सभी पहलुओं के बारे में लोगों को जानना होगा . अन्ना साहब को इस दिशा में पहल करनी होगी . उन्हें या उनकी संस्था की ओर से जनता को समझाना होगा कि भ्रष्टाचार को रोकने में इस क़ानून की क्या भूमिका होगी ?
     इसमें दो राय नहीं कि उनके नेतृत्व में हुए महात्मा  गांधी शैली के इस अनोखे  अनशन  और ऐतिहासिक   सत्याग्रह को अच्छी सफलता मिली . उनके साथ देश के और खास तौर पर दिल्ली के नागरिक-समाज के अनेक विचारवान और विवेकवान लोग भी अनशन पर बैठे. वास्तव में भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता को  अन्ना हजारे के इस शांतिपूर्ण सत्याग्रह में  उम्मीदों की नयी रौशनी नज़र आयी और वह तेज गति से उनकी ओर दौड़ने लगी . केन्द्र सरकार ने भी उनकी इस इकलौती मांग पर विचार करने और जन-लोकपाल क़ानून का मसौदा तैयार करने के लिए कमेटी का गठन कर दिया और अन्ना साहब का सत्याग्रह समाप्त हुआ .कमेटी में पांच सरकारी मंत्री शामिल हैं और पांच प्रतिनिधि  नागरिक समाज से  नामांकित हुए हैं. हालांकि समिति में नागरिक समाज से हुए नामांकन को लेकर  कुछ सवाल भी उठ रहे हैं .
      मुझे लगता है कि  विवादों से बचने के लिए इसमें दोनों तरफ से कुछ और  सदस्य लिए जाने चाहिए .जैसे  समाज सुधारक के रूप में बाबा रामदेव को , जो विगत  कई वर्षों से भ्रष्टाचार के खिलाफ . खास तौर पर कालेधन के खिलाफ जन-जागरण अभियान चला रहे हैं . महिला प्रतिनिधि के रूप में श्रीमती किरण वेदी को लिया जा सकता है .वह देश की प्रथम महिला आई.पी. एस. अधिकारी रह चुकी हैं . समाज-सेवा और जेल -सुधारों के क्षेत्र में उन्होंने काफी काम किया है. सरकार की ओर    से एक और मंत्री तथा केन्द्रीय सूचना आयोग  के  एक प्रतिनिधि को नामांकित किया जा सकता है .खैर , ये केवल एक नागरिक की हैसियत से मेरा सुझाव है . कोई माने तो ठीक , और न माने तो मैं कर भी क्या सकता हूँ ?
      बहरहाल , दस सदस्यों वाली कमेटी घोषित हो चुकी है . अब कमेटी के  लोग जन-लोकपाल क़ानून के प्रारूप पर  विचार कर अंतिम ड्राफ्ट तैयार करेंगे ,जिसे केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद में अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया जाएगा . अनुमोदन के बाद यह लोक सभा में और राज्य सभा में पेश होगा , जहां सदस्यों के बहुमत या आम सहमति से पारित होने के बाद सरकार की ओर से यह अनुमोदन के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा . उनके हस्ताक्षर के बाद ही यह क़ानून देश में लागू हो पाएगा . मेरे कहने का आशय यह है कि  अभी तो जन-लोकपाल क़ानून के प्रारूप को एक और लंबा सफर तय करना है . केन्द्र सरकार भी अपने कोल्ड स्टोरेज में चालीस साल से रखे हुए पुराने लोकपाल क़ानून के प्रस्ताव को निकालेगी और उसके कुछ प्रावधानों को अन्ना साहब के  प्रस्तावित जन- लोकपाल क़ानून में ज़रूर मिलाना चाहेगी . फिर केन्द्रीय केबिनेट में मंजूरी और संसद के दोनों सदनों में इस पर संभावित बहस के दौरान  क्या कुछ नए तथ्य इसमें शामिल हो पाएंगे , या अन्ना साहब और उनके सत्याग्रही अपने जन-लोकपाल क़ानून को यथावत लागू करवाने पर अडिग रहेंगे , यह तो वक्त ही बताएगा. अगर ऐसा कोई क़ानून बनता है तो जन-लोकपाल कौन होगा?  उसके चयन की प्रक्रिया क्या होगी ?  केन्द्र से लेकर राज्यों तक पूरे देश में उसका कैसा  प्रशासनिक ढांचा होगा  ?  उसकी क्या भूमिका होगी ?  उसके न्यायिक-प्रशासनिक अधिकार किस तरह के होंगे ?  क्या  लोकतंत्र के चारों अंग - विधायिका , न्यायपालिका, कार्यपालिका और मीडिया  समान रूप से   जन-लोकपाल क़ानून के दायरे में आएँगे ?  अगर जन-लोकपाल के खिलाफ कोई शिकायत हो, तो उसकी जांच और सुनवाई कौन करेगा ?  ऐसे कई अहम सवाल हैं, जिनके जवाब जनता जानना चाहती है ,लेकिन   कुछ भी साफ़ नज़र नहीं आ रहा है .
                इसलिए  मेरा सुझाव है कि जन-लोकपाल क़ानून का प्रारूप बनाने के लिए गठित  कमेटी इसका जो भी ढांचा तैयार करे , पारदर्शिता के लिहाज से उसे व्यापक बहस के लिए जनता के बीच सरल शब्दों में ज़रूर प्रस्तुत करे .आम जनता से एक निश्चित समय -सीमा में  सुझाव  आमंत्रित कर उनमें से उपयोगी सुझावों को भी इसमें शामिल किया  जाना चाहिए . इसके लिए  आकाशवाणी , दूरदर्शन और समाचार पत्रों में इसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए . सूचना -प्रौद्योगिकी के इस युग में इसके लिए वेबसाईट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. अन्ना साहब की संस्था चाहे तो  अपनी ओर से प्रस्तावित जन-लोकपाल क़ानून के ड्राफ्ट को तत्काल वेबसाईट पर प्रदर्शित कर सकती है. अभी इसके बारे में मेरे जैसे अधिकाँश लोगों के पास  अखबारों और कुछ -कुछ टेलीविजन समाचारों के ज़रिये जो भी जानकारी है , वह लगभग आधी-अधूरी है ,जो 'अधजल गगरी छलकत जाए ' की तरह हास्यास्पद और कभी खतरनाक भी हो सकती है. अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया सहित वेबसाईट में प्रकाशित -प्रसारित और प्रदर्शित होने पर करोड़ों लोगों तक इस क़ानून का प्रारूप पहुंचेगा और जनता अपनी राय दे सकेगी .  इसके अलावा सरकारी कमेटी जब इसका प्रारूप अंतिम रूप से तय कर ले ,तो वह भी इन प्रचार माध्यमों के ज़रिये इसे आम जनता के सामने पेश कर सकती है .देश के सभी राज्यों में  विकास खंड , तहसील जिला और राज्य स्तर पर इसके बारे में वकीलों और आम  नागरिकों की  विचार-गोष्ठियों का आयोजन कर उनमें भी जनता से सुझाव लिए जा सकते हैं.
               सच तो यह है कि  जन-जीवन से सीधे जुड़े किसी भी विषय पर जनता की सलाह के बिना कोई भी फैसला किसी भी स्तर पर अकेले-अकेले या कुछ ही लोगों के बीच नहीं होना चाहिए .  यह लोकतंत्र की सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है.                                                 --  स्वराज्य करुण


Share this article :

1 टिप्पणियाँ:

आशुतोष की कलम ने कहा…

बहुत ही बढ़िया आलेख ...समय लगेगा मगर लोकपाल से काफी हद तक अंकुश लगेगा इस व्योस्था पर

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.