नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » » कुंडलिया छंद ----- दिलबाग विर्क

कुंडलिया छंद ----- दिलबाग विर्क

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on गुरुवार, 28 अप्रैल 2011 | 5:50 pm

 राम भरोसे चल रहा ,मेरा भारत देश 
 लुटेरे इसे लूटते , धर साधू का वेश .
 धर साधू का वेश , भरते अपनी तिजोरी 
 ठग ,भ्रष्ट और चोर ,करें हैं सीनाजोरी .
 कहत 'विर्क' कविराय , अब कौन किसको कोसे 
 भारत देश महान , चले है राम भरोसे .

              * * * * *       साहित्य सुरभि 
Share this article :

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.