राम भरोसे चल रहा ,मेरा भारत देश
लुटेरे इसे लूटते , धर साधू का वेश .
धर साधू का वेश , भरते अपनी तिजोरी
ठग ,भ्रष्ट और चोर ,करें हैं सीनाजोरी .
कहत 'विर्क' कविराय , अब कौन किसको कोसे
भारत देश महान , चले है राम भरोसे .
* * * * * साहित्य सुरभि
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