शूर्पणखा काव्य उपन्यास-- नारी विमर्श पर अगीत विधा खंड काव्य .....रचयिता -डा श्याम गुप्त
पिछली पोस्ट - अष्ठम सर्ग..संकेत....के प्रथम भाग --में शूर्पणखा खर-दूषण से अपनी व्यथा कहती है और वे तुरंत अपराधी को दंड देने के लिए से सहित चल पड़ते हैं , प्रस्तुत है आगे ,.सर्ग ८ का अंतिम भाग दो --- छंद १४ से २५ तक...
१४-
रघुबर बोले, सौमित्र सुनो,
भीषण निशिचर सेना आती |
सजग रहो सीता को लेकर,
पर्वत गुहा वास में जाओ |
राक्षस संकुल का वध करके,
मुक्त करूँ अब जन-स्थान को ||
१५-
निशिचर सेना ने घेर लिया,
चहुँ ओर से आकर रघुपति को |
शोभायमान हो रहे 'राम,
धनु-बाण चढ़ाए तेजपुंज;
जैसे मृग-झुंडों में कोई,
सिंह-शावक हो विचरण करता ||
१६-
देखी राघव की रूप छटा,
सब सेना ठगी ठगी सी थी |
आश्चर्य चकित थे खर-दूषण,
बोले, यह सुन्दर बालक है|
तीनों लोकों में कभी नहीं ,
ऐसी सुन्दरता देखी है ||
१७-
यद्यपि भगिनी को कुरूप कर,
यह दंडनीय अपराधी है |
फिर भी अति सुन्दर नर-वालक,
मन से वध के अनुरूप नहीं |
भेजो सन्देश तुरत मेरा,
उत्तर आकर के बतलाओ ||
१८-
स्त्री को सौंप के दैत्यों को,
अभी क्षेत्र से करें पलायन;
तो ही जीवित बच सकते हैं |
सन्देश सुना जब रघुबर ने,
हंसकर बोले, हे दूत ! सुनो-
कहना जाकर निज नायक से ||
१९-
हम क्षत्री हैं , वन में मृगया-
करना ही खेल हमारा है |
तुम जैसे दुष्ट मृग-दलों को,
हम सदा खोजते रहते हैं |
चाहे काल स्वयं सम्मुख हो,
नहीं युद्ध से डरते हैं हम ||
२०-
भयभीत युद्ध से यदि हो तो,
लौट घरों को जा सकते हो |
नहीं कभी मैं वध करता हूँ ,
समर-विरत यदि रिपु होजाए |
रिपु से दया, कपट चतुराई ,
हैं भयभीत ही सदा करते ||
२१-
क्रोधित होकर खर-दूषण ने,
सेना को आदेश देदिया |
जीवित सबको लेकर आओ,
स्वयं करेंगे हम बध उनका |
विविध भाँति के अस्त्र-शस्त्र ले,
दौड़े निशिचर भरे क्रोध में ||
२२-
राघव की धनु-टंकार सुनी-
सारी सेना दिग्भ्रमित हुयी |
रिपु समझें एक-दूसरे को,
आपस में लड़कर नष्ट हुयी |
चहुँ और से वनवासी,वनचर,
तीरों की वर्षा करते थे ||
२३-
खर-दूषण-त्रिशिरा सहित सभी,
नायकों को, दस -दस वाणों से;
यमलोक राम ने पहुंचाया |
देवों ने अति हर्षित होकर,
सुमन-वृष्टि की रघुनन्दन पर ;
रिपु दल नष्ट हुआ था सारा ||
२४-
राक्षस संकुल के विनाश पर,
जन-आशा का संचार हुआ|
लक्ष्मण भी सिय सहित आगये ,
कर चरण वन्दना हर्षित थे |
रघुवर छवि निरखि निरखि सीता,
मन ही मन आनंदित होतीं ||
२५-
निशिचर सेना के विनाश से,
आतंकित होकर शूर्पणखा ;
लंका की और चली जाती |
संकट है आसन्न देश पर,
सूचना दशानन को देने;
बदला लेने को उकसाने || ---क्रमश: नवम व अंतिम सर्ग --परिणति ...
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sunder rachna
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