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अगज़ल ----- दिलबाग विर्क

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on मंगलवार, 26 अप्रैल 2011 | 7:00 pm


करके प्यार ख़ुशी के लिए दुआ न करना 
गले लगा लेना , गम को खफा न करना .

 हमदर्दी की मरहम , बन जाती है नश्तर 
 इश्क के जख्मों पर कभी दवा न करना .
मुबारिक कहना हर ढलती हुई शाम को 
अंधेरों के लिए किस्मत से गिला न करना .

जुदाई  में  चूम  लेना  तन्हाइयों  को 
प्यार भरी यादों को मगर तन्हा न करना .

यादों की आग में मिटा देना हस्ती अपनी 
जीने के लिए बेवफाई से वफा न करना .

जिसे दिल दिया हो गर वो पत्थर भी निकले                तो ' विर्क ' उस पत्थर से भी दगा न करना .

                     * * * * *  साहित्य सुरभि 
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