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डॉ. भीमराव अम्बेडकर, (भारत रत्न विभूषित)-अपने कानून में जान कब आएगी

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on गुरुवार, 14 अप्रैल 2011 | 4:20 pm


डॉ. भीमराव अम्बेडकर

(photo with thanks from other source for a good cause)

डॉ. भीमराव अम्बेडकर, (भारत रत्न विभूषित) -14.4.1891 को हमारी इस पावन धरती पर जन्मे आज उनके जन्म दिन पर संक्षेप में हम उन्हें नमन करते कुछ जाने जिन्होंने हमारे संविधान  को ड्राफ्ट किया-  रचा- इसे एक जामा पहनाया, कुछ सपनो के साथ कि हमारे भारत में भी एक जुटता आएगी, शांति छाएगी, और जो मन में एक वैमनस्य कुछ लोगों ने फैला रखा है समाज में वह दूर होगा, पर लगता है कि इस बंधन से हमें पूर्ण रुपें आज भी मुक्ति नहीं मिल सकी है और न ही हम अपने उस कानून संविधान को मूर्त रूप दे पाए हैं आओ आज उनके सपनो में हम भी अपने सपने जोड़ें उनके साथ हो लें सपनों को एक पंख दें और आज के भटक रहे समाज को एक नयी दिशा देने में उसमे बदलाव सुधार की जो आज जरुरत आ पड़ी है, आज के सन्दर्भ में उसमे सब मिल अपना बुद्धि विवेक लगा इस रथ को आगे खींच ले जाएँ ,उस मंजिल की और जहाँ एक स्वस्थ धरती दिखे खुला आसमान हो ,पवित्र मन वाले लोग हों जो एक दूसरे का दर्द समझें सब मिल एक ज्योति जलाएं , आओ हम उनके जन्म दिन पर उन्हें याद कर उन्हें अमर बनाये रखें.
डॉ भीमराव जी रामजी और भीमाबाई सकपाल  की कोख में म्हो मध्य भारत में महार जाति में जन्मे पले बढे वे चौदहवीं संतान थे अपने माँ-पिता के उनके दादाजी मालोजी अंग्रेजी सेना में थे. अंग्रेजी सेना अपने अधिकारियों और उनके परिवार को शिक्षित करना चाहती थी और स्कूल खोल उसमे उन्हें पढाया जाता था जिससे उन्हें भी इस में शामिल होने का अवसर मिला अन्यथा उस समय के हालत में ये वंचित रहते छः साल की आयु में माँ का देहावशान  होने के बाद मीराबाई उनकी बुआ ने पाला पिता ने एक विधवा जिजाबाई से शादी  कर ली उन्होंने कभी भी मांस मदिरा  का भक्षण नहीं किया और संत नामदेव , तुकाराम मुक्तेश्वर जी के साथ जुड़े गाते और रामायण महाभारत पढ़ते बढे.
पिता की सेवा निवृति के बाद कोंकण , सतारा गए सरकारी स्कूल में पढाई शुरू की छुआछुत का दौर था उन्हें जमीन पर बैठना होता अध्यापक उनकी नोटबुक तक नहीं छूते पानी वो तब पी पाते  जब उनके मुह में हाथ में कोई डालता एक बार अत्यंत पिपासा के कारण ,उन्होंने स्वतः जहाँ सब पानी पीते थे जा के पिया, पकडे गए, और  उन्हें पीटा गया उच्च हिन्दुओं द्वारा  , अस्पृश्यता की चरम सीमा देख ,उनका मन दर्द से भर उठा और जन समुदाय के कल्याण की भावना मन में हिलोरें लेने लगी  


एक अध्यापक अम्बेडकर ने उनके नाम के आगे अम्बेडकर जोड़ एक नया मोड़ दिया अम्बेडकर और पेंडसे उनके मनोभावों को समझ साथ देते चले, उन्हें प्रकृति से बहुत प्यार था पौधे पेड़ लगाते, स्कूल के अलावा बहुत सी किताबें पढ़ते ,एल्फिन्स्टन हाई स्कूल में पढ़  १९०७  में मेट्रिक किया वहां भी कुछ अध्यापक उनको दंश देते की महार को पढ़ा क्या फायदा , बड़ोदा गुजरात के महाराजा सयाजी राव से उनको छात्र वृत्ति मिली,   बाम्बे जा १९१२ में बी ऐ  किया, नौकरी की तलाश का मन बनाया, सयाजी ने अमेरिका भेजने का मन बनाया उच्च  शिक्षा हासिल करने के लिए ,शर्त  कि दस साल वहां सेवा करनी होगी गुजरात में, १९१३ में न्यूयार्क पहुचे और कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एम ऐ ,डाक्टरेट दर्शनशास्त्र में , १९१६ में किये  "National Dividend for India: A Historical and Analytical Study." वहां से अर्थशास्त्र और राजनीति पढने लन्दन गए !  महाराजा सयाजी ने वापस बुलाया और सेना में सचिव बनाया , लोग एक महार से आर्डर मानने को तैयार नहीं हुए तो वे फिर बाम्बे आ गए सेड़ेंहम कालेज में पार्ट समय के लिए नौकरी किये मन लन्दन जा पढाई करने का था ! 
कोल्हापुर के साहू जी महाराज का साथ पा दबे हुए लोगों के उत्थान हेतु बढे अर्धमासिक संचार पत्रिका मूकनायक निकाला ३१ जनवरी १९२० को  महाराज ने अस्पृश्य लोगों का सम्मलेन बुलाया और बोला कि अब आप ने अपने योद्धा अम्बेडकर को खड़ा किया है अब आप के सारे बंधन बेड़ियाँ कट जाएँगी १९२० में फिर लन्दन गए  विज्ञान में डाक्टरेट किये, बैरिस्टर बन ,अब छुआछूत  से लड़ने बढ़ चले, १९२४ में बहिष्कृत  हितकारिणी  सभा बनायीं ,
 फिर इस सभा द्वारा स्कूल पुस्तकालय इस छुआछूत  के तबके के लोगों के लिए बनाया उनकी गुहार वे कचहरी ले जाते और कुछ दिन में पिता के रूप में पूज्य हो बाबा कि उपाधि पा बाबा साहेब अम्बेडकर कहलाये १९२७ में महाद में दस हजार लोगों ने एक सम्मलेन में हिस्सा लिए और बाबा ने कहा कि हम अपना गौरव तभी प्राप्त करेंगे जब खुद कि सहायता खुद करेंगे अपना सम्मान पाएंगे जब आत्मज्ञान बढेगा .ब्रिटिश सेना में अछूतों कि भारती न होने का विरोध किया
 ४ साल पहले के प्रस्ताव पर अमल करते चावदार मीठे पानी के तालाब में सारे अस्पृश्य एक जुट हो गए, पानी पिया  ,उच्च हिन्दुओं के साथ झड़प हुयी ,तालाब फिर साफ़ किया गया और बाबा साहेब फिर शांति की दुहाई दे सत्याग्रह किया ये मामला कचहरी गया, आन्दोलन रुका और मनुस्मृति की प्रतियाँ जिसने जाति व्यवस्था को बढाया जलाई गयीं
बाबा साहेब ने फिर नयी स्मृति की रचना का एलान किया जो सारे इन बन्धनों को तोड़े, १९२९ में कांग्रेस के मन के विरूद्ध बाबा ने साइमन कमीशन  में भाग लिया जो भारत में एक नयी और उत्तरदायी व्यवस्था लाना चाहती थी चूंकि कांग्रेस में इस छुआछूत दलित जाति को ले ठहराव था ,उसने अपना एक कानून का अलग ढांचा ड्राफ्ट किया था ,बाबा साहेब को गोल मेज सम्मलेन में आमंत्रित किया गया, १९२९-१९३० में उन्होंने दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व किया, ब्रिटिश ने दलित वर्ग के अलग चुनाव व्यवस्था की बात की,ये बात बहुतों को नहीं भाई और  बात नहीं बनी , गाँधी जी अनशन पर बैठे , अंबेडकर ने भी अनशन  और उपवास रखा , २४.९.१९३२ को एक समझौता हुआ और दलित वर्ग को एक छूट, आरक्षण ,शिक्षा , 
जाति व्यवस्था की बात सामने आई रीजनल लेजेस्लेटिव विधानसभा और केंद्र में स्पेशल सीट की बात कही गयी .
२७.१०.१९३५ को उनकी पत्नी रामदेवी का निधन हो गया अंबेडकर टूट गए .१३.१०.१९३५ में नासिक  में अस्पृश्यता का , 
सुधार का सम्मलेन बुला उन्होंने जायजा लिया ,और अंत में हिन्दू धर्म छोड़ अन्य धर्म चुनने का आह्वान किया जिसमे उन्हें समानता  का अधिकार मिले .राष्ट्र में फिर एक गहरा धक्का महसूस किया गया.१९३७ में ब्रिटिश सरकार ने आंचलिक स्तर पर चुनाव का मन बनाया ,कांग्रेस मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा प्रचार में जुटे ,बाबासाहेब ने स्वतंत्र पार्टी अगस्त १९३६ में बनायीं ,बाम्बे अंचल में १९३७ में बाबा साहेब ने यहाँ विजय प्राप्त की और १९२७ में चावदार तालाब पानी का मुकदमा भी जीते बम्बई उच्च न्यायालय से, जो कि दलित वर्ग के पक्ष में गया . 
हरिजन "ईश्वर के लोग" बिल का भी विरोध किया, उन्होंने कड़ी भाषा में कहा की यदि दलित भगवन के लोग हैं तो क्या अन्य दैत्य के ,लेकिन कांग्रेस का तर्क ,महार दलित से उबर," हरिजन" लोगों ने माना और हरिजन बिल मान्य  हुआ- १५.७.१९४७ को ब्रिटिश संसद ने  भारत की स्वतंत्रता का मसौदा पास किया और १५.८.१९४७  को  हमारा प्यारा भारत गुलामी की 
जंजीरों से आजाद- मुक्त हुआ -
फिर स्वतंत्र भारत के संविधान के ड्राफ्टिंग कमिटी में अध्यक्ष बने उन्हें कैबिनेट   में कानून मंत्री का निमंत्रण  मिला फरवरी १९४८ में उन्होंने अपना ड्राफ्ट संविधान सौंपा 15.4.1948 में बीमार पड़े, बाम्बे एक  अस्पताल में भर्ती हुए और उसी अस्पताल में डॉ.शारदा कवीर से शादी किये.२६.११.१९४९ को ये ड्राफ्ट अपने ३५६ आर्टिकिल और ८ भाग , और आर्टिकिल ११ जिसने अस्पृश्यता को समाप्त किया  के साथ संविधान में शामिल हुआ.
 अक्तूबर १९४८ में हिन्दू कोड बिल लाया गया जिससे हिन्दू बिल को संसोधित किया जाये जिसने कांग्रेस पार्टी तक को विभाजित किया जिससे ये सितम्बर १९५१ तक स्थगित किया गया फिर इसमें कुछ सुधार किया गया जिससे अंबेडकर ने कानून मंत्री का पद छोड़ दिया
मई १९५६ में बुद्ध अनिवर्सरी के दिन उन्होंने घोषणा की कि १४ अक्तूबर को वे बौद्ध धर्म ग्रहण करेंगे, खुद अपनी पत्नी और ३ लाख लोगों के साथ . ये पूंछने पर कि ऐसा क्यों किया उन्होंने कहा कि ये प्रश्न आप अपने से और अपने पूर्वजों से पूछिए
५.१२.१९८६ को उनका निर्वाण -प्रयाण हो गया जैसा कि बुद्धिष्ट  कि भाषा में कहा जाता है  और वे शांति कि गोद में सो गए
कुल  मिलाकर हमने देखा कि ये पूरा दौर बहुत ही पीड़ा और रंग-विरंगा गुजरा पर आज तक उस कानून को हम कहाँ लागू कर पाए, आओ हम सब मिलकर जो कानून बनें उनका अनुपालन करें, समय समय पर उसे संशोधित करें ,और जन मानस की भलाई के लिए उसे नयी धारा में लायें, उसमे से कुछ निकालें और कुछ जोड़ते रहें, जनता की भावना का आदर करें, और जातिगत धर्म की भाषा से जुदा हो अपने देश की खातिर अपने को समर्पित कर दें -
इसमें अल्प ज्ञान वश हुयी त्रुटियों और इंग्लिश हिंदी बनाने के क्रम में हुयी अशुद्धियों पर कृपया ध्यान न दे अपना योगदान देंगे ऐसी आशा के साथ

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर  

जय हिंद जय भारत 
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2 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर को नमन!

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

आदरणीय शास्त्री मयंक जी नमस्कार -हमारे संविधान के लिए हमारे समाज के उत्थान के लिए इतना कुछ सह सुन निरंतर संघर्ष करते हुए बाबा साहेब ने जो कुछ किया किया निश्चय ही वह काबिले तारीफ है हमें अवश्य गुण का बखान कर उसका नमन करते रहना है धन्यवाद आप का आप इसमें शरीक हुए

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

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