नेता- डी. एम .- मंत्री- सारे
‘अपने घर के’- ‘अपने बच्चे’ !!
इन्हें सिखाकर हमने भेजा
गाँव -बड़ों का सब संदेसा !!
‘सड़क’ हमारी जैसे नाली
नदी ‘नाव’ न -
कितने प्यारे डूब मरे
वो किसान ले ‘कर्ज’ मरा था
चला ‘मुकदमा’ दो पुस्तों से
‘बूढ़े’ को कुछ कुत्ते नोचे
"छुटकी" को कुछ मिल के ‘बेंचे’
उसके 'मरद' ने उसको छोड़ा
कुछ ने 'होली' फूंकी
कटे -पेड़ सा ‘बाप’ पड़ा है
रोज ‘कचहरी’ चला -खड़ा है
उस घर में 'इन्सान' न रहते
जिनका 'पाँव-पूज' हम चलते
'लात' मार वो हमें विदा कर
मूंछों अपनी 'ताव' जो धरते
सब माना था उसने जाकर
'बड़ा' बनूँ -कुछ -कुर्सी पाकर
'ताकतवर' जब शासन पाऊँ
दूर ‘समस्या’ सब कर पाऊँ
उस ‘कुर्सी’ क्या आग लगी है ????
सभी ‘आत्मा’ –‘संस्कृति’ अपनी
सभी ‘समस्या’ है –‘जल’ मरती ??
'अपने घर' के 'अपने बच्चे'
जब भी ‘घर’ में आयें
आओ उन्हें ‘जगा दें’ भाई
पुनः पुनः उनकी ‘आत्मा’ को
"अमृत" से नहलाएं
‘होश’ दिलाएं
इस ‘दुनिया’ की
इस ‘माटी’ की -
‘परिपाटी’ की
उनमे डालें “जान “
अगर यही 'जागृत' कर पायें
“भारत बने महान” !!!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
http://surenrashuklabhramar.blogspot.com
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३.४.2011
1 टिप्पणियाँ:
अगर यही 'जागृत' कर पायें
“भारत बने महान” !!
agar ka aana hi batata hai ki karya mushkil nahi to kathin avashay hai.aapki mehnat safal ho yahi kamna hai.
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