जब अन्ना हजारे अपनी लड़ाई जीत गए तब वो दो कौड़ी की थर्ड क्लास अंतर्राष्ट्रीय लेखिका अरुंधती राय कहाँ थी? शायद वह अपने नक्सली साथियों के साथ बन्दूक में गोली डाल रही होगी.
नहीं ये मेरा मानना या कहना नहीं है. मैं तो अरुंधती के कुछ भी कहने और सोचने के अधिकार की रक्षा करना चाहूंगा, भले ही मुझे उनकी कही बातों में दूर-दूर तक कोई सच्चाई नज़र न आती हो. ऊपर तो मैं सिर्फ एक ई-मेल का ज़िक्र कर रहा था. मैं यह जानता हूँ की अरुंधती जैसों को सच्चाई से कोई सरोकार नहीं होता और उन लोगों के बारे में सोचकर मैं अपनी चतुराई घटाने पर भी विश्वास नहीं करता लेकिन सवाल में दम था कि मुझे सोचने को मजबूर होना पडा. सवाल के साथ जवाब भी ज़बरदस्त था. अरुंधती कह चुकी है कि आज के दौर में गांधीवादी तरीके से कुछ हासिल नहीं हो सकता है. नक्सली ठीक हैं जो बन्दूक की जुबान से बात करते हैं. अब अन्ना की जीत के जश्न में वे शरीक कैसे हो सकती थीं? वह गांधीवादी तरीके से आम जनता को जीतते हुए देख रही थीं. उनकी जैसी बड़ी लेखिका यह सब हज़म कैसे कर सकती थीं? उनकी नक्सली प्रायोजित सोच धाड़ से ज़मीन पर आ गिरी है. उनका तो हाजमा ही बिगड़ गया होगा. वह कोस रही होगी अपनी क्रांतिकारी सोच को भी, जो बेभाव हो गया है. उनका अंतर्राष्ट्रीय रसूख भी तो डूब रहा होगा. अन्ना की सफलता ने उनकी लुटिया ही डुबो दी है.
क्या इससे सबक लेंगी अरुंधती? बेशक यह जिद्दी महिला सब कुछ देख और समझ रही होगी लेकिन उनकी आँखें बंद होंगी. वैसे भी उनकी आँखें कभी खुली रही हों इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता है.
4 टिप्पणियाँ:
सूर्य की रौशनी किसी की परवाह नही करती है।
----एसी महिलायें, लेखिकायें ही तो नरियों को बदनाम करती हैं....और भारतीयता के विरुद्ध विदेशी षडयन्त्रों( मग्सेसे पुरस्कार, उनकी ऊल जुलूल पुस्तकों आदि का प्रचार आदि) में अनजाने में ही सम्मिलित हो जाती हैं....
KYA OR KITNA SAHI HAI? YE TO WAQT HI BATAYEGA.
speak without analysing the phenomenon in proper way is not good for arundhati type intellectuals ,ithink that's why she is quite
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