मानव संसाधन विकास मंत्रालय के काम-काज का बोझ कपिल सिब्बल को वैसे ही भारी पड़ रहा था. उम्र भी काम नहीं है उनकी कि पहले की तरह तमाम काम निपटा डालें. उनके विभाग में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था. तभी राजा की करतूत सामने आई और दूरसंचार विभाग भी सिब्बल के कंधे लाद दिया गया. उम्र का दस्तूर, काम का बोझ, खीझ, कार्यक्षमता में छीजत - सब कुछ एक ही साथ प्रकट होने लगे.
अब होनी को यही मंज़ूर था कि अन्ना हजारे उनकी परेशानियों के ही दौर में जंतर-मंतर पहुंचे और भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्होंने डाल दिया डेरा. सरकार झुकी, जन-लोकपाल बिल की मसौदा समिति बनी और सिब्बल उसमें भी घुसेड़ दिए गए. यहीं आकर वे फंस गए. चूंकि उन्हें यह पूरा मामला समझ में आया ही नहीं था तो उन्होंने इसके बारे में जो कुछ कहा, उसका लब्बो-लुआब यह रहा कि लोकपाल भले ही बन जाए, हालात नहीं बदलेंगे. उन्होंने इस पर जो सवाल उठाए, उनको ज़रा पहले समझ लिया जाए...
सिब्बल का दावा है कि अगर किसी गरीब बच्चे को शिक्षा नहीं मिलेगी तो वह या उसके अभिभावक स्थानीय स्तर के नेताजी को अपनी समस्या बताएँगे और वही उसका निपटारा करवाएगा, तो इसमें जन-लोकपाल बनाने से क्या हो जाएगा? सिब्बल जैसा धाँसू वकील यह बात कह रहा है इस पर सरासर विश्वास तो नहीं होता लेकिन उन्होंने यही बात अपने स्पष्टीकरण में भी दोहराया तो विश्वास करना पड़ा कि सिब्बल को एक बात बताने की ज़रुरत है. वे मुद्दे को इस तरह समझें कि जब किसी को शिक्षा, पानी, बिजली, मकान, सड़क, न्याय या सूचना जैसी सुविधाएं नहीं मिल रही होंगी तो वह स्थानीय जनप्रतिनिधि के पास जाएगा. जब इस पर भी उसे यह सारी सुविधाएं नहीं मिलेंगी तब वह जन-लोकपाल के पास जाएगा. जन-लोकपाल उस सरकारी लोकपाल जैसा नहीं होगा जिसकी कल्पना सिब्बल और उनके हमज़मात लोग कर रहे थे.
अब यह माना जा सकता है कि सिब्बल को लगता होगा कि इस जन-लोकपाल की व्यवस्था से कुछ बनने या बिगडनेवाला नहीं है तो वे समझ रहे होंगे कि जन-लोकपाल की कार्रवाई से भी हमारे नेता नहीं सुधरने वाले हैं. औरों की तो बात ही क्या करें, सिब्बल और उनके समर्थन में उतरे सलमान खुर्शीद खुद भी जन-लोकपाल की फटकार से शायद नहीं सुधरेंगे. अगर वे खुद सुधर जाएं तो जिन समस्याओं का ज़िक्र सिब्बल ने किया है, वह समस्याएँ आज़ादी के छः दशक बाद भी क्यों बनी रहें?
इसका मतलब यह नहीं कि जन-लोकपाल बिल से हमें हासिल कुछ नहीं होगा - जब इसके प्रस्ताव से ही सिब्बल और खुर्शीद बेनकाब हो सकते हैं तो इसकी असली ताक़त का अंदाजा लगाया जा सकता है. अब जनता सिब्बल और खुर्शीद जैसों के नकली फेर से तो बच ही सकेगी...!
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