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माफियाओं के चंगुल में ब्लागिंग

Written By हरीश सिंह on शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011 | 11:37 pm

क्या इसी सभ्यता पर करेंगे हिंदी का सम्मान


रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय ,
टूटे  से फिर ना जुटे, जुटे गांठ पड़  जाय.
मनुष्य जीवन इस सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना है. भगवन ने अपनी सारी कारीगरी समेट कर इसे बनाया है. जिन  गुणों और विशेषताओं के साथ इसे भेजा गया है, वे किसी अन्य  प्राणी को प्राप्त नहीं हैं. भगवान तो सबका पालनहार पिता है. उसे अपनी संताने एक सामान प्रिय हैं. और वह न्यायप्रिय है. स्वयं निराकार होने के कारण उसने मनुष्य को अपना मुख्य प्रतिनिधि बनाकर भेजा है. ताकि वह सृष्टि {विश्व व्यवस्था} की देखरेख कर सके. उसे उसकी आवश्यकता से अधिक सुख सुविधाएँ और शक्तियां इसलिए दी हैं की वह उसके विश्व उद्यान को सुन्दर,सभ्य  और खुशहाल बनाने में अपनी जिम्मेदारियों को ठीक ढंग से निभा सके. 
पर मनुष्य की पिपाशा, लोभ और स्वार्थ इतना बढ़ गया है की वह विश्व उद्यान को सजाने सवारने  के बजाय उसे नष्ट करने में जुट गया है. हम सभी मानते हैं की ईश्वर एक है,  मात्र वही एक पालनहार पूरी सृष्टि का सञ्चालन कर रहा है. धर्म या जाति का बंटवारा ईश्वर ने नहीं बल्कि मनुष्य ने किया है. हिन्दू मानता है की मनु और सतरूपा से मनुष्य जाति का प्रादुर्भाव हुवा और मुसलमान आदम और हव्वा को बताता है.  मेरी खुद की सोच है की दोनों एक को ही अलग अलग भाषाओ में परिभाषित करते हैं. हो सकता है की यही सोच आप लोंगो की भी हो. जब सभी मनुष्य जाति एक ही पूर्वज की संतान हैं तो झगडे किस बात के हो रहे हैं. सभी आपस  में भाई-भाई होने के बावजूद क्यों लड़ते हैं. यह श्रृंखला जब मैंने शुरू की तो कुछ लोंगो ने मुझपर आरोप लगाये की मैं सलीम खान और अनवर जमाल का समर्थन करता हू, जी नहीं यह बात सर्वथा अनुचित है. दोनों ब्लोगर हैं मैं दोनों का सम्मान करता हूँ. पर आपत्तिजनक विचार किसी के हो उसका मैं समर्थन नहीं करता. और न ही "बी एन  शर्मा जी ,सुरेश चिपलूनकर जी हमारे लिए दुश्मन है. जिस तरह मुसलमान सलीम खान और अनवर जमाल को अपना प्रतिनिधि नहीं मानता उसी तरह हिन्दू भी बी एन शर्मा और सुरेश चिपलूनकर को अपना प्रतिनिधि नहीं  मानता है. मेरा विरोध किसी से भी व्यक्तिगत नहीं बल्कि विचारों का है.  फिर भी इनके लेखो पर समस्त मुसलमानों और समस्त हिन्दुओ पर अंगुलिया उठाई जाने लगती हैं. जब सलीम खान ने लिखा की "

जापान दुनियाँ का पहला देश जिसने इस्लाम को प्रतिबंधित किया !

तब  मुझे यह बिलकुल अच्छा नहीं लगा था क्योंकि एक तरफ उसी परमात्मा के बनाये हुए इन्सान भयंकर हादसे से पीड़ित थे और दूसरी तरफ सलीम खान "इस्लाम" का प्रचार करने में जुटे थे. मैं सलीम भाई से पूछना चाहूँगा की पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक सहित कई मुस्लिम देश जो इस्लाम को ही मानते हैं फिर उन पर मुसीबते क्यों आई. अब कोई यह मत कह देना की यहाँ मनुष्यों द्वारा शुरू की गयी लड़ाई है और वह खुदा के फज़ल से हुआ....... जी नहीं खुदा इतना कठोर नहीं हो सकता की अपनी संतानों को इस तरह की यातना दे. निश्चित रूप से हर मनुष्य अपने कर्मो की सजा भोगता है. प्रकृति के साथ किया गया खिलवाड़ मनुष्य को ही भोगना पड़ेगा.  सलीम खान की पोस्ट में अहंकार भी झलकता है जो उनके व्यक्तित्व को छोटा कर देता है. अपने ही ब्लॉग पर उन्होंने ने लिखा है. 

दोस्तों का दोस्त और दुश्मनों का दुश्मन हूँ::: सलीम ख़ान


भई ! सीधा सा फ़ॉर्मूला है TIT FOR TAT ! अभी पिछले दिनों एक सज्जन ने मुझे फ़ोन करके पूछा कि आप ऐसे क्यूँ हैं?
मैं कहा::: क्यूँ वे ऐसे है, इसलिए. जब मैं मोहब्बत से बात करता हूँ तो लोग डरपोंक समझते हैं और जब मैं जूता उठता हूँ तो वो सलाम करते हैं.
तो भई जूता खाना कौन चाहता है और कौन मोहब्बत से रहना चाहता है वो खुद ही तय कर ले.
-सलीम ख़ान
हद तो यह है की ऐसे अहंकार भरे शब्दों का विरोध करने के बजाय कुछ लोंगो ने उनकी तारीफ भी की...

सलीम खान के कई लेख निश्चित रूप आपत्तिजनक है. पर उसी ब्लॉग पर उन्होंने कई ऐसे लेख भी लिखे है जो निश्चित रूप से प्रेरणा देते हैं. हम सलीम खान के उसी रूप को पसंद करते हैं जहा पर वे आपसी सौहार्द और भाईचारे की बात करते हैं. यही हाल अनवर जमाल खान का भी है. बन्दा  पठान है जोश में आकर कुछ भी लिख देता है. जैसे उन्होंने शिवलिंग के बारे में जो आपत्तिजनक बाते लिखी वह और लोंगो की तरह मुझे भी पसंद नहीं आई. पर वही अनवर भाई ने भगवन शिव के बारे में बेहतरीन पोस्ट भी लिखी है. यही नहीं प्रेम, हिन्दू-मुस्लिम एकता के बारे में भी उन्होंने काफी कुछ लिखा है. 

पर हिन्दुज्म की बात करने वाले  बी एन शर्मा और सुरेश चिपलूनकर ने इस्लाम और अल्लाह की बुराई के सिवा कुछ भी नहीं लिखा. इसी तरह कई ऐसे लेखक भी हैं जो चेहरा छुपाकर लोंगो को गालियाँ देने में ही अपनी शान समझते हैं.  उन नकाबपोशो से यह लोग अच्छे हैं जो कुछ कहते हैं तो खुलेआम कहते हैं. 

मैं मानता हूँ कश्मीर में जो हिन्दुओ के साथ हो रहा है वह निश्चित रूप से गलत है. जो गुजरात में हुआ वह भी गलत है. देखा जाय  तो हिन्दू-मुसलमान को लेकर देश में कितनी लड़ाईयां हो चुकी हैं, अब तो जाति के नाम पर, शिया सुन्नी के नाम पर  लोग एक दुसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं. आखिर क्यों.?  अभी तक बाबरी मस्जिद को लेकर लाखो लोग अपनी जान गँवा चुके हैं. जिन लोंगो की जान दंगे में गयी क्या वही लोग दोषी थे, जिनके परिवार आज भी उस त्रासदी को झेल रहे हैं उनका कुसूर क्या है..? जिन बातों को बहुत पहले भुला देना चाहिए था उसी बातों को हम बार-बार जिन्दा करके कही न कही मानवता को नुकसान पहुंचा रहे हैं. 

मैंने ब्लोगिंग के दौरान बहुत से ब्लोगों पर गया और देखा की ९९ प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो किसी भी विवाद से दूर रहना चाहते हैं. ऐसे लोंगो के नाम गिनना शुरू करूँ तो शायद सारे  नाम लिखने के लिए मुझे कई दिनों का वक़्त चाहिए, मैं ऐसे सभी लोंगो को प्रणाम करता हूँ जो हिन्दू मुसलमान होने से पहले एक सच्चे इन्सान हैं और इन्ही लोंगो से आज इंसानियत जिन्दा हैं. आज यदि देश में अमन चैन कायम है तो ऐसे ही लोंगो की देन हैं., मैं देखता हूँ कई लोग मुझे गलियां देते हैं, अपशब्दों से नवाजते हैं पर मैं उनकी बातों का बुरा नहीं मानता. क्योंकि गालियाँ  देने वाले डरपोक लोग हैं. ना तो उनकी कोई पहचान होती है और ना ही ऐसे लोग अपने नाम उजागर करना चाहते है. निश्चित रूप से ऐसे लोग डरते हैं.... सच भी है जिनकी मानसिकता गलत है. जो समाज में  विन्द्वंश फैलाना चाहते हैं वे तो डरेंगे ही. यदि सच कहना ही है तो पहचान छुपाने की जरुरत क्या है. 

मैं एक पत्रकार हूँ पर यह अच्छी तरह जानता  हूँ जो बातें अख़बार में लिखी जाती हैं वह लोग पढ़ते हैं और भूल जाते है. पर ब्लॉग पर लिखी बाते हमारी आने वाली पीढियां भी पढ़ेंगी, वे क्या सोचेंगी हमारे बारे में. लिहाजा बाते वही होनी चाहिए जो इन्सान और इन्सान के बीच आपसी सौहार्द कायम रखे. आपसी प्रेम बनाये रखे. 

आज यदि हिन्दू मुसलमान के बीच बनी खाई गहरी होती जा रही है तो उसके गुनाहगार हम सभी हैं. प्रत्येक मानव धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर आपस में मनमुटाव बनाये हुए है. मात्र चंद लोंगो के किये की सजा सभी को भुगतनी पड़ती है. आखिर धर्म और जाति की बेड़ियों में जकड़कर हम कब तक मानवता को दागदार करते रहेंगे. 

एक अनुरोध सभी से...........

 आप सभी लोंगो से अनुरोध है की उन सभी ब्लागरों का विरोध करें जो आपसी प्रेम में खटास पैदा कर रहे हैं. जो मानवता को शर्मशार कर रहे हैं. उनका सबसे अच्छा विरोध यही है की उनकी किसी भी पोस्ट पर न तो कमेन्ट करें और न ही उन्हें तरजीह दें. आज दुनिया कहा से कहा जा रही है और लोग  फालतू बातो में वक्त जाया कर रहे हैं है. 

 यदि आपको लगता है की मेरे विचार गलत हैं, मुझे प्रेम व भाईचारा की बात नहीं करनी चाहिए तो आप सभी बताएं, मैं आज के बाद ब्लॉग लिखना छोड़ दूंगा. क्योंकि जहाँ पर गन्दी मानसिकता के लोंगो का जमावड़ा हो वहा पर रहना मुझे गंवारा नहीं.

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1 टिप्पणियाँ:

आशुतोष की कलम ने कहा…

हरीश जी..आप का ये लेख बहुत पसंद आया... शायद हरीश सिंह ने लिखा है...अंतर तो दिख ही गया..
मैं भी काफी दिनों तक विवादित मुद्दे नहीं छेड़ता था..मगर अन्याय बर्दाश्त करना कायरता और अपराध है.. कुछ लोग ब्लॉग की आड़ में एक धर्म विशेष का प्रचार कर रहें है...सब जानते है...यहाँ तक तो उनका अधिकार है..
मगर दुसरे धर्म के पूज्य को गलत भी ठहरा रहें है...ये सही नहीं है...कभी कभी जबाब हमें भी देना पड़ता है तो आप उनके वकील बन जाते है..क्यों?? शायद सेकुलर जमात में दाखिला ले लिया है है क्या? की चनाव लड़े जात बड़ा वोट चाही का ....??

अतिशय रगड़ करे जो कोई
अनल प्रकट चन्दन से होए..

चलिए आप को साधुवाद की आप ने आज मन की लिखी..बिना किसी पूर्वाग्रह के..
जय हिंद वन्दे मातरम

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