इस अनजाने ,
सुनसान और वीराने ,
जहां में ,
मैं अकेला नहीं हूँ .
मैं ही नहीं , यहाँ मेरे ,
जीवन की गहराइयाँ भी हैं,
फिर मैं अकेला कहाँ ,
मेरे साथ मेरी तन्हाईयाँ भी हैं ,
कुछ पुरानी यादें ,
कुछ अधूरे वादे ,
कदम चले हैं ,
जिस डगर पर ,
हैं धुंधले से रास्ते ,
शायद मंजिल से मिला दे ,
ठोकरों में जमाने की आए जो ,
वो डेला नहीं हूँ ,
इस अनजाने -----------------------------
गैरों में रहकर वफा का ,
गिला तो न होगा ,
अपना कहलाने वालो ने दिया जो ,
वो सिला तो न होगा .
समझा रहें हैं ये रास्ते ,
कुछ नए आयाम ,
कुछ खोना कुछ पाना,
बस इसी का जिंदगी है नाम,
मेरी तक़दीर पर रहम कर,
और बोझ न डालो मुझ पर ,
इतना बोझ उठा सकूं जो ,
मैं कोई ठेला नहीं हूँ ,
इस अनजाने ,
सुनसान और वीराने ,
जहां में ,
मैं अकेला नहीं हूँ ,
मैं अकेला नहीं हूँ....'
3 टिप्पणियाँ:
सुंदर भावपूर्ण रचना |
आशा
bhtrin rchna lekin aek sch to yeh hai ke me to akelaa hi hun naa . akhtar khan akela kota rajsthan
Very touching.
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Thanks for your valuable comment.