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शहरीकरण और समाज

Written By Vibhor Gupta on शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011 | 11:25 am

नोयडा मे एक फ्लैट में खुद को सात महीने से बंद रखने वाली दो बहनों का मामला उनकी मानसिक अवस्था और बीमारी का तो है ही, हमारे विकास और शहरीकरण तथा समाज के विखंडित होते जाने के प्रभावों की कहानी भी कहता है।

टूट जाती है डोरियां, राखियों की भी तब
मुंह मोड लेता है भाई, बहन की जिम्मेदारी से जब
ना समझ पाये कोई कलाई पर बंधी डोरी का अर्थ
तो फ़िर रक्षाबंधन और भैयादूज के त्योहारों का मतलब ही क्या है?

मिल जाता है मिट्टीयों मे अर्थ, उच्च शिक्षा का भी तब,
घिर जाये अवसादों मे, कुछः गम्भीर स्थितियां आने पर जब
गर ना सिखा पाये लडना हमे, हालतों के आने पर
तो फ़िर ऐसी इन्जिनियर और accauntant की पढाई का मतलब ही क्या है?

मिट जाती है मानवता, क्रूर हो जाती है भावना भी तब 
महीनों से कैद लडकियों  की खबर भी नहीं पडौसी को जब
ना जान सके हम अपने किसी पडौसी का भी दर्द
तो फ़िर ऐसी high profile residential कालोनी का मतलब ही क्या है?

खत्म हो जाते है रिश्तें, बिखर जाता है समाज भी तब 
पर्सनल लाईफ़् के नाम पर, पसंद ना हो किसी की दखलन्दाजी भी जब
ना साझा कर सके संवेदनायें भी, गर किसी के साथ हम
तो फ़िर ऐसे शहरीकरण और विकास की दौड का मतलब ही क्या है?
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1 टिप्पणियाँ:

तरुण भारतीय ने कहा…

आम आदमी पर भौतिकता हावी हो गयी है ,जिसके कारण मानवीय रिश्ते भी छुटते जा रहे हैं |

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