तरसती आँखों ने थे देखे हजारो सपने
पर डरती हूँ कहीं वो टूट न जाए,
इंतज़ार में हूँ एक हमसफ़र के साथ का
पर डरती हूँ कहीं साथ छूट न जाए॥
अंधेरों में बैठी हूँ रौशनी की आस लिए
कोई सूरज बन कर आए अँधेरा दूर भगाए,
अंधेरों की तो आदत हो गयी है हमे
पर डरती हूँ कहीं फिर वो सूरज डूब न जाए॥
तरसती आँखों ने थे देखे हजारो सपने.......
किनारे पे खड़ी साहिल को निहारती हूँ
कि काश कोई मुझे उस पार ले जाए,
साथ मेरे माझी भी है और नाव भी
पर डरती हूँ बीच भँवर डूब ना जाए॥
तरसती आँखों ने थे देखे हजारो सपने.......
रूठी है किस्मत रूठा है सारा जहाँ
हम है जिसके सहारे न जाने वो है कहाँ,
जाना चाहती हूँ उसके पास हमेशा के लिए
पर डरती हूँ कहीं वो भी रूठ न जाए॥
तरसती आँखों ने थे देखे हजारो सपने.......
हजारों सपने करोड़ों ख्वायिशें
अनगिनत अरमानो और प्यार का खजाना,
कितना है संजोया रखा छिपा कर सालो से
पर डरती हूँ कहीं यह खजाना लूट न जाए॥
तरसती आँखों ने थे देखे हजारो सपने
पर डरती हूँ कहीं वो टूट न जाए,
इंतज़ार में हूँ एक हमसफ़र के साथ का
पर डरती हूँ कहीं साथ छूट न जाए॥
~'~hn~'~
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5 टिप्पणियाँ:
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति दिल को छू गयी।
dhanyavaad vandana ji
---सुन्दर नज़्म......
किनारे पे खड़ी साहिल को निहारती हूँ
कि काश कोई मुझे उस पार ले जाए,
साथ मेरे माझी भी है और नाव भी
पर डरती हूँ बीच भँवर डूब ना जाए॥
.....बहुत खूब....रोमांच के साथ अनजान संदेह के वो क्षण सबके जीवन में आते हैं..सुन्दर..सुन्दर अभिव्यक्ति....
dhanyavaad gupta ji
मातम न मना ओ प्यार मेरे, देख अभी मैं जिन्दा हूँ |
रुखसत न हुआ अभी जनाजा मेरा, इंतज़ार है तेरी वफ़ा का मुझे |
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