त्रिपदा अगीत गज़ल....
(पागल-दिल)
भग्न अतीत की न बात करें,
व्यर्थ बात की क्या बात करें;
अब नवोन्मेष की बात करें।
यदि महलों मैं जीवन हंसता,
झोंपडियों में जीवन पलता;
क्या ऊंच नीच की बात करें।
शीश झुकायें क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमायें;
कुछ आदर्शों की बात करें ।
शास्त्र ,बडे-बूडे औ बालक,
है सम्मान देना पाना तो;
मत श्याम’ व्यन्ग्य की बात करें ।
2 टिप्पणियाँ:
शीश झुकायें क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमायें;
कुछ आदर्शों की बात करें ।
bahut khoob
kavita-kaarn
bahut badiya..
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