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नजरों का धोखा है

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on शनिवार, 2 अप्रैल 2011 | 2:35 pm


नजरों  का  धोखा  है 
हम सब एक हुए 
मन के हैं नेक हुए 
जाति -पांति छोड़ बढे  
नेता की शादी में
सब मिल के खाए
पलथी लगाये
मिर्ची खिलाये तो
बोल पड़ा तोता है
नजरों का धोखा है !!!
नाप लिए आसमां
लाँघ गए सागर को
अणु -परमाणु-सब
मुठ्ठी  में बाँधा है
बिजली को पैदा करूँ
 बादल  मै बरसाऊँ
आई सुनामी तो 
पोल सारा खोल गयी 
धोखा ही धोखा है
कश्ती में छेद यहाँ 
भाई-विभीषण है 
जननी ने फेंक दिया 
रिश्तों-ने -बेंच दिया 
साधू ने पार किया 
लक्ष्मण की रेखा है 
"प्रेमी" भी खोद कब्र 
"शाह-जहाँ " बनता है 
"ताज-महल" बूँद-बूँद 
रोता ये कहता है 
चंदा चांदनी 
नजरों का धोखा है 

बच्चे तो प्लेट धुलें  
"ऊँट" बने ढोते हैं
नारी सशक्त बनी 
संसद में आज खड़ी 
घूंघट-में-चेहरे में 
‘वेदना’ समेटी है 
दान कीदहेज़’ की  
 ‘बलि’-बेदी’ देखी है
न्याय की देवी की
आँखों में पट्टी है !!!


दुनिया ये मिटटी का                                                                                                                     एकघरौंदा’ है
लाल-लाल सुन्दर सा
खट्टा- करौंदा है !!!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
२९..११
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