" पर्दा "
झूठ को सत्य समझते हैं,
सत्य लगता है झूठा .
कर्म हमारे असफल हुए ,
दोष है कि विधाता रूठा .
कल था जो नाली का पत्थर,
आज कंगूरे जा चढ़ा है .
असलियत पे पर्दा ................................................
दुश्मन को दोस्त कहें या दोस्त को दुश्मन .
स्पष्ट हैं भाव दुश्मन के ,
दोस्त की गद्दारी पे है चिलमन .
जाहिर दुश्मन की नहीं परवाह ,
दोस्त में छिपा दुश्मन बड़ा है .
असलियत पे पर्दा .............................................
मृगमरीचिका मैदान है जहान ,
मन बहलावें ख्वाब हैं .
प्रश्नों का तांता लगा है ,
न किसी के पास कोई जवाब हैं .
जिस स्वाभिमान में ज़माने से टकराया,
वो स्वाभिमान ही मुझपे भारी पड़ा है .
असलियत पे पर्दा पड़ा है ,
झूठ बेनकाब खड़ा है .
असलियत पे पर्दा ..........................................................
3 टिप्पणियाँ:
मृगमरीचिका मैदान है जहान ,
मन बहलावें ख्वाब हैं .
प्रश्नों का तांता लगा है ,
न किसी के पास कोई जवाब हैं .
कृष्ण कायत जी नमस्कार बहुत सुन्दर लिखा आप ने सुन्दर प्रस्तुति सब नज़रों का धोखा है-असलियत कहाँ बच रही अब श्वेत आटे में भी जहर लोग मरे जा रहे-श्वेत वसन में लिपटे लोग -शुभ कामनाएं
सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर५
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति!
कल था जो नाली का पत्थर, आज कंगूरे जा चढ़ा है
...अगर अपनी मेहनत से चढा है तो बहादुरी का काम है..क्या नाली के पत्थर को कन्गूरा नहीं बनना चाहिये..
--कुछ कविता की व्याकरण का भी ध्यान रखिये..
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