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चहका है चिड़ियों का झुण्ड ,
हँसना क्या शुरू किया तुमने
फैली है गुलाब की सुगंध ,
जूडा क्या खोल दिया तुमने
स्वप्नों के सुन्दर स्वप्न लोक की,
पहली सुन्दर परी तुम्ही हो
गुलाब पुष्प सी मधुमय दिखती ,
लगता है अभी अभी टहली हो
लगता हूँ मै बिका बिका ,
ऐसा क्या मोल दिया तुमने
फैली है गुलाब की सुगंध ,
जूडा क्या खोल दिया तुमने
एक झलक उस मधुमय की
करवाती है सम्पूर्ण समर्पण,
रति सा दिखता वह मूर्त सौन्दर्य
जैसे दिवाकर की पहली किरण,
लगता हूँ मै लुटा लुटा
ऐसा क्या लूट लिया तुमने
फैली है गुलाब की सुगंध ,
जूडा क्या खोल दिया तुमने
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4 टिप्पणियाँ:
प्रेम रस मे भीगी बहुत ही सुन्दर रचना………वाह्।
sundar rachna !
भाव तो अच्छे हैं,,,,पर कविता....सब व्याकरण का कूडा कर दिया है....
मातम न मना ओ प्यार मेरे, देख अभी मैं जिन्दा हूँ |
रुखसत न हुआ अभी जनाजा मेरा, इंतज़ार है तेरी वफ़ा का मुझे |
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