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सलीम खान से डरते हो आप, आपके दिल में भी कोई जगह तक नहीं उसके लिये... इतने छोटे दिल के साथ कैसे ' हमारी वाणी ' कहला सकते हो आप ? - Praveen Shah

Written By DR. ANWER JAMAL on बुधवार, 6 अप्रैल 2011 | 8:19 pm

खुशदीप सहगल 
१- घूमते हुए हम जा पहुंचे खुशदीप सहगल  जी के ब्लॉग देशनामा पर तो पता चला कि जैसे कुछ लोग सलीम खान का विरोध कर रहे थे , उसी तर्ज़ पर  अब कुछ गलत लोग गीताश्री जी का विरोध कर रहे हैं लेकिन एक फर्क है कि इस बार 'व्यक्ति विरोध' को घटिया वे लोग भी कह रहे हैं जो यह काम खुद करते रहते हैं. लेख अच्छा है और उससे भी अच्छी हैं उसकी टिप्पणियाँ . आप ज़रूर पढ़ें. हमने कहा है कि :
न तो गीता एक दिन में लिखी जा सकती है और न ही कोई एक दिन में गीताश्री बन सकता है . मैं नहीं जानता कि गीताश्री कौन हैं और न ही कभी उन्हें पढने का अवसर ही मिला लेकिन आप बता रहे हैं कि वह एक औरत हैं तो वह ज़रूर अच्छी ही होंगी. इस देश में एक औरत के लिए   घर बाहर काम करना कितना कठिन है  , यह आज किसी से छिपा नहीं है . ऐसे में जिसने अपने लिए जो मक़ाम बनाया है , कैसे बनाया है वही जानता है. 'व्यक्ति विरोध की मानसिकता' नकारात्मक कहलाती है और बुरे नतीजे दिखाती है .

हम गीता जी के घटिया विरोध पर आपत्ति करते हैं. 
 http://www.deshnama.com/2011/04/blog-post_06.html

२- हमारे प्रिय  प्रवीण शाह जी की पोस्ट का विषय भी यही है. वह पूछ रहे हैं कि

सलीम खान से डरते हो आप, आपके दिल में भी कोई जगह तक नहीं उसके लिये... इतने छोटे दिल के साथ कैसे ' हमारी वाणी ' कहला सकते हो आप ?

३-  इन सभी बातों  का हल है कि नरमी का बर्ताव किया जाये और सकारात्मक काम किया जाये . यह समाधान देती हुई पोस्ट भी देखि जा सकती है:

अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया-‘अल्लाह नर्म आदत का है, वह नर्मी को पसंद करता है और नर्मी पर वह कुछ देता है जो सख्ती पर या किसी और चीज़ पर नहीं देता।‘

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2 टिप्पणियाँ:

shyam gupta ने कहा…

ये व्यक्तिगत बातें ब्लोग का समय, माहौल व स्थान खराब करती हैं---बचें.. सिर्फ़ साहित्यिक बातें....

हरीश सिंह ने कहा…

साहित्यिक बातें....

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