खुशदीप सहगल |
१- घूमते हुए हम जा पहुंचे खुशदीप सहगल जी के ब्लॉग देशनामा पर तो पता चला कि जैसे कुछ लोग सलीम खान का विरोध कर रहे थे , उसी तर्ज़ पर अब कुछ गलत लोग गीताश्री जी का विरोध कर रहे हैं लेकिन एक फर्क है कि इस बार 'व्यक्ति विरोध' को घटिया वे लोग भी कह रहे हैं जो यह काम खुद करते रहते हैं. लेख अच्छा है और उससे भी अच्छी हैं उसकी टिप्पणियाँ . आप ज़रूर पढ़ें. हमने कहा है कि :
न तो गीता एक दिन में लिखी जा सकती है और न ही कोई एक दिन में गीताश्री बन सकता है . मैं नहीं जानता कि गीताश्री कौन हैं और न ही कभी उन्हें पढने का अवसर ही मिला लेकिन आप बता रहे हैं कि वह एक औरत हैं तो वह ज़रूर अच्छी ही होंगी. इस देश में एक औरत के लिए घर बाहर काम करना कितना कठिन है , यह आज किसी से छिपा नहीं है . ऐसे में जिसने अपने लिए जो मक़ाम बनाया है , कैसे बनाया है वही जानता है. 'व्यक्ति विरोध की मानसिकता' नकारात्मक कहलाती है और बुरे नतीजे दिखाती है .
हम गीता जी के घटिया विरोध पर आपत्ति करते हैं.
http://www.deshnama.com/2011/04/blog-post_06.html२- हमारे प्रिय प्रवीण शाह जी की पोस्ट का विषय भी यही है. वह पूछ रहे हैं कि
2 टिप्पणियाँ:
ये व्यक्तिगत बातें ब्लोग का समय, माहौल व स्थान खराब करती हैं---बचें.. सिर्फ़ साहित्यिक बातें....
साहित्यिक बातें....
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