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अब यह जहाँ रहने लायक कहाँ रहा

Written By Hema Nimbekar on मंगलवार, 22 मार्च 2011 | 1:23 pm

 

अब यह जहाँ रहने लायक कहाँ रहा,
कहाँ वो भाई चारा कहाँ वो इंसान रहा |
वो प्यार माँ के लिए पिता के लिए स्नेह अब कहाँ रहा,
इतनी जमीन मेरी इतनी है तेरी धरती माता को बाँट इंसान रहा ||




जहाँ रहतें थे सब मिलजुल कर सब कहते थे हम एक है,
वही परिवार अब बट गया बोले आधा-आधा ही ठीक है |
यहाँ अब भाई भाई के खून का प्यासा है,
सबका प्यारा दुलारा तो अब सिर्फ़ पैसा है ||



जियो और जीने दो जैसे नारा अब कहाँ,
इंसानियत का कोई नही साथी हर मजहब के लोग जहाँ |
सब है करते अपने अपने धर्म की बातें यहाँ,
हिंदू रहे हिंदू मुस्लिम रह गए मुस्लिम यहाँ |
अब गुरुनानक जी और इशु मसी के बोल कहाँ,
सब इंसान कहते ख़ुद को पर इंसानियत है कहाँ ||


~'~hn~'~
(Written after 13 September 2008 Delhi bombings.... I was to upset at least 30 people killed and over 100 injured )


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3 टिप्पणियाँ:

Saleem Khan ने कहा…

जियो और जीने दो जैसे नारा अब कहाँ,
इंसानियत का कोई नही साथी हर मजहब के लोग जहाँ

shyam gupta ने कहा…

यह जहां तो सदा वैसा ही रहता है...सुन्दर. जीने लायक.....कुछ गलत लोग वातावरण को दम-घोंटू, असहनीय बना देते हैं---उन्हें ही तो बेनकाब करना है...

Hema Nimbekar ने कहा…

यह एक बहुत ही विचारनिए विषय है....कुछ लोग ही सही पर है तो हम सब में से ही.....आखिर वो भी समाज का ही एक हिस्सा है.....जो अपने स्वार्थ पूर्ण सोच से सिर्फ धर्म को इंसानियत से ऊपर मानते है...धर्म इंसान को इंसानियत सिखाने और इंसानियत का सच्चा रास्ता बताने के लिए है...न की इंसानियत भूलने के लिए..

खैर अपने विचार यहाँ व्यक्त करने के लिए आप दोनों पाठको को मेरी और से धन्यवाद |

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