आज हमारा पावन पर्व नवरात्रि आरम्भ हो रहा है और हम अतीत से ये मानते रहे हैं की माँ जगद जननी हमारे बीच अपने नौ स्वरुप लेकर विराजमान रहेंगी ये बड़े गर्व की बात है की आज भी हमारी नारियां व् पुरुष इनकी आराधना में तत्पर रहते हैं विशेषकर हमारी महिला वर्ग इस और बहुत जागरूक है और उनकी पूजा अर्चन हेतु सुबह से ही जुट गयी हैं उनकी कलश स्थापना करना उनका पाठ करना अब दिन चर्या का मुख्य अंग बना रहेगा नौ दिन -हर काम से पहले इसकी प्राथमिकता देना माँ दुर्गा के हर रूप को दिन प्रतिदिन याद कर अपने को पवित्र बनाना और बुराइयों पर अच्छाइयों को उजागर करना बुराइयों का दमन करना इन दिनों में विशेष स्थान पाता है हमारे मंदिरों में माँ के दर्शन हेतु लम्बी लाईन अब लगी रहेंगी चाहे वो किसी भी माँ का पवित्र मंदिर हो जैसे माँ वैष्णवी हों , माँ विन्ध्याचल हों , माँ काली कलकत्ते काली घाट में विराजमान हों या हमारे घर गाँव से जुडी अधिष्ठात्री देवी कोई भी मंदिर इन दिनों जगमगाता रहेगा
आइये हम भी माँ के इन नौ स्वरूपों का कुछ ध्यान कर लें उनका नाम कम से कम अपने अन्तरंग में बसा लें ,अपनी संस्कृति को आत्मसात कर लें ,
१- शैल पुत्री - माँ शैल पुत्री -हम पहला दिन इन्हें समर्पित करते हैं इनकी पूजा करते हैं पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारन माँ का नाम शैल पुत्री पड़ा .
२-ब्रह्मचारिणी -दूसरा दिन समर्पित है माँ ब्रह्मचारिणी को -दो हाथ, कमंडल ,माला धारण किये सती और पार्वती के रूप में तप शिव को पाने के लिए ब्रह्मा से वरदान
३- चंद्रघंटा -तीसरा दिन हम समर्पित करते हैं माँ चंद्रघंटा को -माँ के मस्तक पर आधा घंटे के आकार में विराजमान चन्द्र के कारण ये नाम पड़ा इसे हम चन्द्र-खंडा भी कहते हैं .
४- कुसुमांडा -चौथा दिन माँ को समर्पित होता हैं इनके कुसुमांडा स्वरुप की हम पूजा करते हैं ये शेर पर सवार सज्जित रहती हैं इनकी अष्ट भुजा शोभित होती है ये सम्पूर्ण ज्ञान से परिपूर्ण -सौर परिवार को दर्शित करती हैं .
५-स्कन्द माता देवी- पांचवां दिन माँ के स्कन्द स्वरुप की पूजा होती है ये अग्नि की देवी हैं हिमालय पुत्री शिव के साथ जुडती हैं इनके एक पुत्र का वर्णन आता है जिसे हम स्कन्द कहते हैं कार्तिक की माता स्कन्द भगवान देवताओं की सश्त्र वाहिनी सेना में मुख्य होते हैं .
६- कात्यायिनी देवी - छठा दिन माँ के कात्यायिनी स्वरुप को समर्पित है -इनके तीन आँखें व् चार भुजा शोभित होती हैं शेर की सवारी .ये छठवीं स्वरुप हैं माँ दुर्गा की , इन्हें हम कात्यायिनी कहते हैं .कट का पुत्र कात्या के कारण इनका ये नाम पड़ा था.
७-कालरात्रि- सातवाँ दिन माँ को समर्पित होता है काल रात्रि रूप में -ये रात्रि के सामान काली हैं -काली जटा विखेरे-लम्बे लम्बे बाल -लोग इस स्वरुप को देख भय खाते -गले में -मानव मुंड की माला -इनके क्रोध का कोई ठिकाना नहीं शिव ने इन्हें किसी तरह मनाया था सब की अपनी बहुत गाथाएं हैं जितना भी हम वर्णन करें इनका कम है
८-महागौरी देवी -आठवां दिन माँ के इस रूप को समर्पित होता है -ये आठ साल की कुवांरी कन्या के समान होती हैं शांति तेज , तीन आँखों वाली चार भुजा वाली पवित्र स्वरूप , बैल की सवारी आठवां स्वरुप इनका माँ गौरी है
९- सिद्धिरात्रि देवी -नौवां दिन माँ को समर्पित होता है सिद्धिरात्रि के रूप में ये सारी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी हैं ये मार्कंड पूरण में वर्णित है अनिमा , महिमा, गरिमा लधिमा ,प्राप्ति , प्राकर्न्य ,ईशित्व -वशित्व के रूप में . ब्रह्मण रूपी सिद्ध गान्धर्व यक्ष दैत्य भगवन सब उनकी आराधना करते हैं
कुल मिलाकर हम देखते हैं की नारी के बिभिन्न रूप को दर्शाती माँ दुर्गा हमारी नारियों को प्रेरित करती है कि उनकी शक्ति चरम है वे चाहें तो क्या नहीं कर सकती बुराइयाँ तो उनके आगे दुम दबाकर भागती हैं वे उनका मर्दन करती हैं कितने राक्षसों को उन्होंने मारा -शांति स्वरूपिणी हैं वो -तो फिर कहीं चंडी -काली- हम सभी से आवाहन करते हैं कि माँ के इन स्वरूपों को सीखें -धारण करें -वे हमारा हर कार्य निश्चित ही सिद्ध करेंगी
जय माता दी
जय माँ नयना देवी
जय जय माँ दुर्गे जय माँ वैष्णो
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५ प्रतापगढ़ उ.प्र.
४.४.2011
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