जिज्ञासा ---
"ते प्रच्छता स जगामा स वेद | स चिकित्वां ईयते सान्यवीयते ||" ---ऋग्वेद १/१४५/१५८०....
---सर्वत्र गमनशील, सर्वज्ञाता, ज्ञानवान, सर्व व्यापक अग्निदेव से ही प्रश्न पूछा जाता है | ....अर्थात जो ज्ञानी, अनुभवी, जागृत ,प्रगतिशील व समाज में सर्वमान्य विद्वान् हैं उन्हीं से प्रश्न पूछा जाता है, पूछा जाना चाहिए , न की हर किसी से | उन्हीं के बचनों से भ्रांतियां व शंका निवारण-समाधान एवं ज्ञान का उन्ननयन हो सकता है | उन्हीं के वाक्यों को महत्त्व देना चाहिये |
"तमित्प्रिच्छन्ति न सिमो वि पृच्छति | स्वेनैव धीरो मनसा यद् गभीत ||" ---ऋग्वेद १/१४५/१५८१....
-----ज्ञान संपन्न ही जिज्ञासा प्रकट करते हैं , क्योंकि सर्व साधारण उनसे ( ज्ञानियों से ) नहीं पूछ सकते | अज्ञानी , अल्पग्य या साधारण बुद्धि के सामान्य जन( वास्तु-विचार-ज्ञान के बारे में ) जिज्ञासाएं प्रकट नहीं करते | अत: यह ज्ञानियों का एक कर्तव्य है कि ज्ञान को सर्व साधारण के लिए विभिन्न प्रकार से सुलभ करायें |
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ati sundar vichar
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