हम बड़े शान से लिखते है की "हिंदी मात्र एक भाषा ही नहीं वरन हमारी मातृभाषा है". जी हाँ हिंदी को बढ़ावा देने की बात हम बड़े गर्व से करते है पर कैसे बढ़ावा देंगे यह कभी सोचा है आपने. जी नहीं आप सोच सकते है पर सोचने की जहमत नहीं उठाते.
यह बाते हमें काफी दिनों से खटक रही थी पर सोचता था की जाने दीजिये इन विवादित बातो से बचना ही उचित पर आज बड़े भाई प्रवीन शाह के ब्लॉग "सुनिए मेरी बात" पर एक पोस्ट पढ़ी ..... आप भी देंखे.
देखा आपने , मैं प्रवीन जी पोस्ट पर नहीं जाता पर इस पोस्ट में जो कमेट दिए गए हैं, मैं उनकी बात करता हूँ. जब मैं ब्लॉग लेखन में आया तो मैं समझा था की यह वही लोग लिखते होंगे जो वास्तव में समाज के बारे में चिंतित होंगे. एक अच्छे विचारक होंगे. येह पर स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति होगी न की अभिव्यक्ति की ऐसी स्वतंत्रता ......... जी हा स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति से मेरा तात्पर्य है की हमारा समाज जो सदियों से पुराने...... अब आगे जो कहूँगा वह "डंके की चोट पर"
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