पिछले पूरे सप्ताह दुःख भरी खबरें ही देखने और सुनने को मिलीं | क्रिकेट मैचों में भारत का प्रदर्शन साधारण रहा, नये-नये घोटालों की खबरें आती रहीं, लीबिया में जन आंदोलन हारता हुआ दिखा, देश में जगह-जगह ‘रास्ता रोको’ ‘रेल रोको’ आन्दोलनों के समाचार चिंताओं को बढ़ाते रहे, जापान के भूकंप और फिर सुनामी और अटॉमिक रेडीएशन की चिंता भरी खबरें और साथ में लगातार चलने वाले बैकग्राउंड म्यूज़िक की तरह हमारे महान नेताओं के कारनामों की दिल दुखाने वाली खबरें व्यथित करती रहीं पर अचानक आज एन डी टी वी इंडिया की न्यूज़ पर एक ऐसी खबर सुनी कि दिल बाग-बाग हो गया !
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में गरीबी की परिभाषा देकर अचानक सारे दुःख और चिंताएं दूर कर दीं ! सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि शहर में १७ रुपये प्रतिदिन या उससे भी कम कमाने वाले और गाँवों में १२ रुपये प्रतिदिन या उससे कम कमाने वाले लोग ही इस देश में गरीब हैं ! दिल खुशियों से भर गया ! सब चिंताएं दूर हो गयीं ! अचानक महसूस होने लगा कि हमारे देश में गरीबी तो लगभग खत्म ही हो चुकी है ! सरकार की मुहिम ‘गरीबी हटाओ देश बचाओ’ कामयाब हो चुकी है ! एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को सत्ता में लाने के सुखद नतीजे तो अब सामने आये हैं ! हमारे घर की बर्तन माँजने वाली और झाडू पोंछा करने वाली बाई, जिसे हम ६०० रुपये माहवार देते हैं, और जो अन्य कई घरों में काम करके लगभग ३००० रूपए कमा ही लेती है, उसे हम व्यर्थ ही गरीब समझते रहे, हमारा ड्राइवर जिसे हम ५००० रुपये प्रतिमाह देते हैं और जो पुराने कपड़ों को भी माँग कर शान से पहन लेता है, गरीब कहाँ है ! श्रीमान जी का ऑफिस बॉय जो पिछले दो साल से हम सबसे चन्दा माँग कर अपनी पत्नी का इलाज करवा रहा था और फिर भी उसे बचा नहीं पाया वह भी कहाँ गरीब है उसकी तनख्वाह भी तो ३५०० रुपये प्रतिमाह है और उसका बेटा भी १०० रुपये की दिहाड़ी पर प्रतिदिन काम करता है ! आसपास की कई कोठियों में बेलदारी का काम करने वाला माणिक नाम का मजदूर भी तो अभी तक १०० रुपये प्रतिदिन कमाता था और अब तो तरक्की के साथ उसकी मजदूरी १२५ रुपये प्रतिदिन हो गयी है ! पर्क के रूप में जिसे रोज गरम चाय, पुराने जूते, कपडे, त्यौहार पर इनाम और मिठाई अलग से मिलती हैं वह भी गरीब कहाँ रहा ! यहाँ तक कि हमारी सहेली बीनाजी जो गरीब बच्चों के लिये ‘प्रयास’ नाम की संस्था चला रही हैं और उनके विकास के लिये काम करती है, उसमें आने वाले बच्चे भी तो कचरा बीन कर प्रतिदिन कम से कम ५० से ६० रुपये रोज कमा ही लेते हैं वह भी अब गरीब कहाँ रहे !
सरकारी आँकड़ों के अनुसार १७ रुपये और १२ रुपये तक की कमाई वाले लोग देश में केवल ३७% ही हैं ! बाकी ६३% तो गरीबी से मुक्ति पा चुके हैं ! आइये हम सब इस महान उपलब्धि का जश्न मनाएं और एक दूसरे को बधाई दें ! और लानत भेजें उन निराशावादी लोगों को जो कहते हैं कि देश के केवल १०% लोग ही अमीर हैं बाकी ९०% लोग आज भी गरीबी की चक्की में पिस रहे हैं ! क्या वास्तव में हमें अपना नज़रिया नहीं बदल लेना चाहिये ? घिसे पिटे कपड़े पहने, कंधे झुकाये, टूटी साइकिल घसीटने वाले वाले, दुखी और परेशान से दिखने वाले जिन लोगों को हम गरीब समझते रहे वे गरीब थोड़े ही हैं ! यह तो सिर्फ हमारी गलत फहमी थी ! अब तो अपने दिमाग पर जोर डाल कर सिर्फ उन ३७% लोगों के बारे में चिंता कीजिये जो वास्तव में १७ रुपये और १२ रुपये तक ही प्रतिदिन कमा पाते हैं वे बेचारे क्या करते होंगे ? क्या उनका जीवित रह पाना एक चमत्कार नहीं है ?
क्या ये सारी बातें आपको कुछ अजीब लग रही हैं ? विश्वास नहीं हो रहा है ? या ये तथ्य हजम नहीं हो पा रहे हैं ? मेरी सलाह मानिये ! अपने दिमाग पर जोर मत डालिये ! हमारे नेता और सरकारी अफसर बहुत मेहनती हैं उनकी कद्र कीजिये, उनकी बातें सुनिये और मानिये, तथा सिर्फ और सिर्फ सरकारी चश्मा लगाइए ! आपके सारे भ्रम दूर हो जायेंगे !
साधना वैद
5 टिप्पणियाँ:
गरीबी की यह परिभाषा देश के करोड़ों गरीबों के लिए अपमानजनक है.
लो जी हम अपने दिमाग पर जोर नहीं डालते...जब सुप्रीम कोर्ट ने ही कह दिया तो फ़िर हमारी क्या औकात....कहीं अवमानना में....
किसी को भी गरीब मत मानो ...गरीब कोई रहेगा ही नहीं ..
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का विनम्र प्रयास।
क्या वास्तव में हमें अपना नज़रिया नहीं बदल लेना चाहिये ? घिसे पिटे कपड़े पहने, कंधे झुकाये, टूटी साइकिल घसीटने वाले वाले, दुखी और परेशान से दिखने वाले जिन लोगों को हम गरीब समझते रहे वे गरीब थोड़े ही हैं ! यह तो सिर्फ हमारी गलत फहमी थी !
Nice post.
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Thanks for your valuable comment.