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अरे भई साधो......: बाबा रे बाबा! विदेशी बैंकों से ज्यादा धन तो धर्मस्थलों में पड़ा है

Written By devendra gautam on गुरुवार, 7 जुलाई 2011 | 9:46 am

केरल के पद्मनाभ स्वामी मंदिर का एक तहखाना खुलना बाकी है और अभी तक एक लाख करोड़ का धन सामने आ चूका है. फिलहाल राजघराने के अनुरोध पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से सरकार ने अगले तहखाने से निकलने वाले धन का विवरण सार्वजनिक न करने का निर्णय लिया है. साईं बाबा के देहावसान के बाद उनके तहखाने से मिली खरबों की संपत्ति के मालिकाना हक का विवाद चल ही रहा है. जाहिर है कि देश के मंदिरों, मसजिदों, गुरुद्वारों, गिरिजाघरों बी एनी धर्मस्थलों में इतना धन पड़ा हुआ है कि उसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता. यह विदेशी बैंकों में जमा भारतीय काला धन से हजारों या लाखों गुना ज्यादा है और अनुपयोगी पड़ा है. सरकार बाबा रामदेव की संपत्ति को खंगालने में लगी है जबकि वह घोषित है. उसका राजस्व भी जमा होता है और दर्जन भर कंपनियों के जरिये उसका राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान भी हो रहा है. लेकिन धर्मस्थलों के तहखानों में पड़े धन का राष्ट्रीय विकास में क्या योगदान हो रहा है? उनसे सरकार को कौन सा राजस्व प्राप्त हो रहा है. इसका राष्ट्रीय विकास में योगदान कैसे हो इसपर विचार करने की जरूरत है.

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4 टिप्पणियाँ:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

इस धन को सकारात्मक रूप में देखिये और सीख लीजिये कि छोटी छोटी बचत हम सभी करें... तो देश की सभी समस्या समाप्त हो सकती है... सीख लेने की जरुरत है... और यह धन एक दिन में और एक व्यक्ति द्वारा इकठ्ठा नहीं हुआ है ना ही भ्रष्टाचार से पैदा हुआ है... यह स्वेच्छा से और सदियों से संग्रहीत सम्पदा है... इसके लिये बेवजह शोर मच रहा है....

devendra gautam ने कहा…

भाई अरुण जी! मैंने धर्मस्थलों में संचित धन के औचित्य या प्रकृति पर कोई सवाल नहीं उठाया है. उसके मालिकाना हक पर भी कोई टिपण्णी नहीं की है. मैंने तो सिर्फ उस धन को तहखाने से निकालकर रोटेशन में लाने की जरूरत बताई है. इससे राष्ट्र का विकास होगा. रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. उसके तहखाने में पड़े रहने से न भक्तों का हित हो रहा है न भगवान का. लक्ष्मी चलायमान है उसे जाम नहीं होने देना चाहिए. चाहे वह विदेशी बैंक में जाम हो चाहे तहखाने में. मालिकाना चाहे जिसका रहे. लक्ष्मी चलायमान होगी तभी सबका हित साध सकेगी.

Bharat Bhushan ने कहा…

हाँ भई साधो यह सच है. अब कोई अण्णा हज़ारे इस पर बोलेगा नहीं क्यों कि यह राजनीतिक नहीं धार्मिक भ्रष्टाचार है. सुप्रीम कोर्ट को यह निर्णय लेने में एक सदी लग जाएगी कि मूर्तियों और ग्रंथों को व्यक्ति मान कर ऐसे धन को यूँ ही रहने दिया जाए या ऐसे धार्मिक संगठन चलाने वालों से पूछा जाए कि वे इतनी संपत्ति पर कुंडली मार कर कैसे और क्यों बैठे हैं.

रविकर ने कहा…

Bhushan ने कहा…
यह राजनीतिक नहीं धार्मिक भ्रष्टाचार है


चलो हो ही जाएँ ये पंक्तियाँ --

बाँछे खिलती जा रही है गजनवी की |

आँखे खुलती जा रही हैं अब सभी की ||


अंग्रेजों ने कल वहाँ अफ़सोस मनाया,

सबसे बड़ी यही गलती है तीन सदी की ||


कोहिनूर सरीखे कई काम अंजाम दिए पर

व्यर्थ हुआ जो छोटी-छोटी बहुत ठगी की ||


उधर गजनवी नरकवास में मुहं को ढापे-

बोला हमने सोमनाथ से व्यर्थ घटी की ||



नादिरशाह सरीखे कितने मन के लंगड़े -

उत्तर भारत की जनता पर चोट बड़ी की |


दक्खिन के हर मठ-मंदिर का संकल्प तेज ये

पाई-पाई का संरक्षण कर बात बड़ी की ||


रविकर को विश्वास हुआ कि भारत माता

सारे जग से अच्छी , असली सोन-चिड़ी थी ||

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