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मिट भी गया तो क्या

Written By नीरज द्विवेदी on मंगलवार, 12 जुलाई 2011 | 11:38 pm

कुछ कहना चाहता हूँहमें पता है कि हमारा अस्तित्व बहुत छोटा हैपर हमारा उद्देश्य कभी छोटा नही रहा । इस भ्रष्टाचार और अराजकता के इस घनीभूत अंधेरे से लडते हुये बुझ भी गये तो दु:ख़ नही होगा । पूरे देश को जगाने का उद्देश्य लेकर आये हैंये देश जहाँ जनता परेशान और हताश होकर सूखे पत्ते की तरह हो गयी हैइन सूखे पत्तो में अगर स्वाभिमान की आग लगाते हुयेअगर इन्ही जलते हुये पत्तो के बीच खो भी गये तो खेद नही होगा । प्रस्तुत है --

उद्देश्य बडा लेकर निकला हूँभारत को राह दिखाना है,

इक छोटा दिया हूँघुप्प अँधेरे से लडबुझ भी गया तो क्या ?

अलख जगानी हर घर कीबाधा हो नर की या पत्थर की,
भारत को फ़िर भारत करने मेंअस्तित्व मिट भी गया तो क्या?

चन्द्रगुप्त के बंशज जागोअब नेताओं को नेतृत्व सिखाना है,
इक चिंगारी हूँसूखे पत्ते सुलगाकरखो भी गया तो क्या ?

भारत का नेतृत्व आजअसहाय पडामृतप्राय हो गया,
भारत माँ का जाया हूँरक्षण हित मिट भी गया तो क्या ?

जीवन के सारे पहलू भारत मेंयहाँ वहाँ निरुद्देश्य पडे हैं,
नेता जनता को छ्लता हैसेवक स्वामी पर भारी है,

वृक्ष का सूखा पत्ता हूँइस आँधी मेंउड भी गया तो क्या ?
मैं तो खाक हूँखाक में पलाखाक में मिल भी गया तो क्या ?
खाक में मिल भी गया तो क्या ?




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1 टिप्पणियाँ:

Rajesh Kumari ने कहा…

ek nanha deep hi chingaari bhadkane ke liye kaafi hai.desh bhakti ki bhavna ko ujagar karti hui kavita bahut achchi hai.bahut pasand aai.aabhar.

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