कुछ कहना चाहता हूँ, हमें पता है कि हमारा अस्तित्व बहुत छोटा है, पर हमारा उद्देश्य कभी छोटा नही रहा । इस भ्रष्टाचार और अराजकता के इस घनीभूत अंधेरे से लडते हुये बुझ भी गये तो दु:ख़ नही होगा । पूरे देश को जगाने का उद्देश्य लेकर आये हैं, ये देश जहाँ जनता परेशान और हताश होकर सूखे पत्ते की तरह हो गयी है, इन सूखे पत्तो में अगर स्वाभिमान की आग लगाते हुये, अगर इन्ही जलते हुये पत्तो के बीच खो भी गये तो खेद नही होगा । प्रस्तुत है --
उद्देश्य बडा लेकर निकला हूँ, भारत को राह दिखाना है,
इक छोटा दिया हूँ, घुप्प अँधेरे से लड, बुझ भी गया तो क्या ?
अलख जगानी हर घर की, बाधा हो नर की या पत्थर की,
भारत को फ़िर भारत करने में, अस्तित्व मिट भी गया तो क्या?
चन्द्रगुप्त के बंशज जागो, अब नेताओं को नेतृत्व सिखाना है,
इक चिंगारी हूँ, सूखे पत्ते सुलगाकर, खो भी गया तो क्या ?
भारत का नेतृत्व आज, असहाय पडा, मृतप्राय हो गया,
भारत माँ का जाया हूँ, रक्षण हित मिट भी गया तो क्या ?
जीवन के सारे पहलू भारत में, यहाँ वहाँ निरुद्देश्य पडे हैं,
नेता जनता को छ्लता है, सेवक स्वामी पर भारी है,
वृक्ष का सूखा पत्ता हूँ, इस आँधी में, उड भी गया तो क्या ?
मैं तो खाक हूँ, खाक में पला, खाक में मिल भी गया तो क्या ?
खाक में मिल भी गया तो क्या ?
1 टिप्पणियाँ:
ek nanha deep hi chingaari bhadkane ke liye kaafi hai.desh bhakti ki bhavna ko ujagar karti hui kavita bahut achchi hai.bahut pasand aai.aabhar.
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