न हुश्न था, न हुश्न की नुमाइश थी |
आज गलियों में, बेरुखी सी छाई थी |
उसका दर भी, आज, बन्द लग रहा था |
उसके मिलने को, आज, जी कर रहा था |
बस यूँ गुमसुम-सा, घूम रहा था |
दोस्त न आज कोई, मिल रहा था |
टहलते-टहलते यूँ ही, दूर तक निकल गया |
वही पास एक चाय की दुकान पर बैठ गया |
चुस्कियां चाय की अब चल रही थीं |
आखें अब भी उसके दर पर लगी थीं |
बेसब्री-सी यूँ बढ रही थी |
दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी |
तभी न जाने कोन निकला |
दिल धक् से यूँ बिकला |
ये क्या कातिल बला थी |
अरे ये तो अपनी ही दिला थी |
किसी की कलाकारी ने इसे और हसीन कर दिया था |
सुबह-सुबह इसको किसी ने इतना रंगीन कर दिया था |
बाद में पता चला चाय की दुकान पर |
आज इसको देखने आने वाले हैं, घर पर |
दिल बैठ गया, मैं भी बैठ गया |
मुझको ये क्या सिला दिया |
किसी और की उसे बना दिया |
मैंने ऐसा क्या गुनाह किया |
उठा धीरे-से चल पड़ा घर की ओर |
पड़ा बिस्तर पर, कर पीठ उसके घर की ओर |
तभी घंटी बजी, सामने खड़ी थी सजी |
मुस्करा रही थी, बुलावा आने का भेजी |
साथ में कुछ सामान ले गयी |
आना ज़रूर जाते-जाते कह गयी |
सब घर जाने की तैयारी में लग गया |
मैं भी कोई बहाना ढूढने में लग गया |
अब कैसे जाना होगा |
कैसे मुँह दिखाना होगा |
बस जिन्दगी को भुलाना होगा |
आंसू पीकर शादी में इसकी जाना होगा |
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आज गलियों में, बेरुखी सी छाई थी |
उसका दर भी, आज, बन्द लग रहा था |
उसके मिलने को, आज, जी कर रहा था |
बस यूँ गुमसुम-सा, घूम रहा था |
दोस्त न आज कोई, मिल रहा था |
टहलते-टहलते यूँ ही, दूर तक निकल गया |
वही पास एक चाय की दुकान पर बैठ गया |
चुस्कियां चाय की अब चल रही थीं |
आखें अब भी उसके दर पर लगी थीं |
बेसब्री-सी यूँ बढ रही थी |
दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी |
तभी न जाने कोन निकला |
दिल धक् से यूँ बिकला |
ये क्या कातिल बला थी |
अरे ये तो अपनी ही दिला थी |
किसी की कलाकारी ने इसे और हसीन कर दिया था |
सुबह-सुबह इसको किसी ने इतना रंगीन कर दिया था |
बाद में पता चला चाय की दुकान पर |
आज इसको देखने आने वाले हैं, घर पर |
दिल बैठ गया, मैं भी बैठ गया |
मुझको ये क्या सिला दिया |
किसी और की उसे बना दिया |
मैंने ऐसा क्या गुनाह किया |
उठा धीरे-से चल पड़ा घर की ओर |
पड़ा बिस्तर पर, कर पीठ उसके घर की ओर |
तभी घंटी बजी, सामने खड़ी थी सजी |
मुस्करा रही थी, बुलावा आने का भेजी |
साथ में कुछ सामान ले गयी |
आना ज़रूर जाते-जाते कह गयी |
सब घर जाने की तैयारी में लग गया |
मैं भी कोई बहाना ढूढने में लग गया |
अब कैसे जाना होगा |
कैसे मुँह दिखाना होगा |
बस जिन्दगी को भुलाना होगा |
आंसू पीकर शादी में इसकी जाना होगा |
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3 टिप्पणियाँ:
Yahi hota hai mohabbat me aasik ke sath,
usko chahne wale bhi chale jate hai kisi or ke sath......
Aapne behtren rachna likhi hai.......
Jai hind jai bharatYahi hota hai mohabbat me aasik ke sath,
usko chahne wale bhi chale jate hai kisi or ke sath......
Aapne behtren rachna likhi hai.......
Jai hind jai bharat
Jana to hoga ... chahe jitna bura lage .. jana to padega.
Main ittifaq rakhta hun saajan aawara ji se.. unhone sahi kaha.. magar bahut kuchh na chahte huye bhi karna padta hai..
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Thanks for your valuable comment.