पुत्री के जन्म दिन पर,
दष्ठौन, पार्टी !
कहा था आश्चर्य से ,
तुमने भी ।
मैं जानता था पर -
मन ही मन ,
तुम खुश थीं ,
हर्षिता, गर्विता |
दर्पण में,
अपनी छवि देखकर,
हम सभी प्रसन्न होते हैं ;
तो , अपनी प्रतिकृति देखकर ,
कौन हर्षित नहीं होगा |
पुत्र जन्म पर ये सवाल -
क्यों नहीं पूछा था तुमने ?
मैंने भी पूछ लिया था-
अनायास ही |
इसका उत्तर -
लोगों के पास तो था,पर-
नहीं था तुम्हारे पास ही |
प्रकृति-पुरुष,
विद्या-अविद्या,
ईश्वर-माया,
शिव और शक्ति;
युग्म होने पर ही -
पूर्ण होती है,
यह संसार रूपी प्रकृति |
अतः, गृहस्थ रूपी संसार की
पूर्णाहुति में ही है
यह पार्टी ||
4 टिप्पणियाँ:
पुत्र जन्म पर ये सवाल -
क्यों नहीं पूछा था तुमने ?
Sir, Bahut acchhi rachna...
यह संसार रूपी प्रकृति |
अतः, गृहस्थ रूपी संसार की
पूर्णाहुति में ही है
यह पार्टी ||
bahut sundar prastuti
यह संसार रूपी प्रकृति |
अतः, गृहस्थ रूपी संसार की
पूर्णाहुति में ही है
यह पार्टी ||
bahut sundar prastuti
धन्यवाद ..शालिनी एवं अनिल जी....
ओम पूर्णम पूर्णमादाय पूर्नामेवाशिश्यते ...
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Thanks for your valuable comment.