भटक यानी भगवान् में अटकना
भगवान् में जो अटक जाता है वही भटक जाता है |
भगवान् में जो अटक गया वह किसी के काम का नहीं रहता है इसीलिए लोग कहते हैं की वह भटक गया |
इस दुनिया में तो कोई भटक नहीं सकता है, क्युकी दुनिया तो गोल है और वह फिर वह अपनी जगह आ ही जाता है |
किन्तु जो एक बार भगवान् में अटक जाता है, फिर वह इस दुनिया में वापस नहीं आता है |
वह तो इस दुनिया के उपयोग का नहीं रह पाता है |
और जो इस दुनिया के उपयोग का नहीं होता है तो दुनिया वाले कहते हैं की वह अपने रास्ते से भटक गया |
क्यूंकि दुनिया का रास्ता वह वो जो जानते हैं वही सही मानते हैं |
और जो उनके इस रास्ते से अपना एक और अलग रास्ता निकालता है तो कहते हैं की वह भटक गया |
जैसे रास्ते पर चलते हुए किसी चीज़ को देखा और उस एक चीज़ पर आखें अटक गयी तो आदमी ठहर जाता है |
और उस क्षण का आनंद लेता है कि कहीं यह नज़रों से ओझल न हो जाए तो जो साथ होते है तो कहते हैं कि अरे उसे देखो वह कहाँ अटक गया |
इसी तरह जब कोई भगवान् में अटक जाता है तो फिर उस भगवान् का आनंद लेना चाहता है और दुनिया वाले कहते हैं कि देखो कहाँ अटक गया |
अटक भी तो त्राटक है क्यूंकि त्र में अटक जाना ही तो त्राटक है |
1 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब, क्या शानदार भटकन है.......भ= भगवान को ...टक =टकटकी लगा कर देखना = = = भटकना...
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