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Surrender समर्पण

Written By Brahmachari Prahladanand on रविवार, 10 जुलाई 2011 | 8:23 am

Surrender समर्पण
sur end er
सर एंड अर
सर समाप्त और नष्ट
सर को समाप्त कर उसको नष्ट कर देना है सर एंड अर कहलाता है
दुनिया का ये दस्तूर बड़ा पुराना है
सर को कलम कर राजा के पास लाना है
राजा को सर दिखा कर इनाम पाना है
राजा ने उस सर को ठोकर मारना है
और कहना है लटका तो इसे चौराहे पर
और दुनिया देखे की जो हमारे आगे सर नहीं झुकाते हैं
उनका अंजाम कैसा होता है
यही बात जब जगह होती है
कोन कितने भक्त अपने भगवान् के बनाता है होड़ होती है
सर झुकवा दो अपने भगवान् के सामने या फिर नहीं झुकाते तो कटवा लो
बात यही बस दो होती है
रीत यही पुरानी है
जिनसे जानी है वह सर झुका लेता है
जिसने न जानी है वह सर कटा लेता है या फिर काट लेता है

समर्पण
सम अर पण
सम जब हो जाता है यानी सामान जब हो जाता है
और अपने आपको नष्ट कर बदल कर परमात्मा का अणु पा लेता है वह है समर्पण
यह बात ऐसे होती है
जब साधना की बात होती है
तो साधना में सामान प्राण को जगायेगा जाता है
उसमे अपने आप को अर्पित किया जाता है
फिर वह करने वाला अपने आपको को उस साधना की अग्नि में भस्म कर और परमात्मा के अणु को प्राप्त कर लेता है
और फिर वह परमात्मा के सम हो जाता है
जब कोई किसी के सम होता है तभी वह उसे कुछ अर्पण कर सकता है
बड़े ने दिया तो वह भीख और दान होता है
छोटे से लिया तो वह खोना अपना इमान और अभिमान होता है
सम से लिया तो वह फिर सम हो जाता है
जैसे पानी है और वह पानी में मिल जाता है तो सम हो जाता है
आग अगर आग में मिले जो सम हो जाती है
इसी तरह जीव जब ब्रह्म होकर फिर ब्रह्म में मिलता है तो वह सम हो जाता है
और ब्रह्म का मिलना ब्रह्म में सभी को भाता है
राजा ही राजा के साथ खाता है
रानी ही रानी के साथ खाती है
आज भी कोई सम नहीं है
सब ने आर्थिक तौर अपने को ऊपर निचे कर रखा है
वही डाल कोई बीस रुपये में होटल में खाता है
वही डाल कोई दो हज़ार रूपये में होटल में खाता है
सम तो केवल परमात्मा है
जो सभी को एक सा देता है
एक जैसा सबसे व्यवहार करता है
अब बात उसपर है जो परमात्मा की सुनता है और जो नहीं सुनता है
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