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गम था, बेदर्द जिन्दगी का फ़साना था

Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on मंगलवार, 12 जुलाई 2011 | 3:58 pm

गम था, बेदर्द जिन्दगी का फ़साना था |
अब बीत गया, जो अपना जमाना था |

हर दिल आह भरता था |
हर सख्स फ़ना होता था |
हर नज़र राह तकती थी |
हर जान हमपर मरती थी |

वो क्या दिन थे, वो क्या थी रातें |
गुज़र गए दिन, बीत गयी वो रातें |

अपना भी कुछ अफसाना सुनाना था |
ज़माने को कुछ और याद दिलाना था |

ज़माना भूल न सकेगा, मेरा अफसाना था |
क़िस्से सुनाएगा जमाना ऐसा अफसाना था |

हम भी मिसाल बन गए, जिन्दगी में |
हम भी कमाल कर गए, जिन्दगी में |

मोहब्बत का हर काम किया |
गम से जुड़ा हर काम किया |
काम न नाम के लिए किया |
काम बस काम के लिए किया |

अब तो बस तन्हाई है |
जिन्दगी की वफाई है |
अकेलेपन की रुखाई है |
किसी की याद सताई है |

सूने-सूने दिन, सूनी-सूनी रातें |
गुज़रे हुए दिन, गुजरी हुई रातें |

यादों के सहारे, किसी से न बतियाते |
मसरूफ हैं, मशगूल हैं |
दिल को अपने सुकूँ है |
उसी के सहारे, उसी से हैं बतियाते |

गम था, बेदर्द जिन्दगी का फ़साना था |
अब बीत गया, जो अपना जमाना था |
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2 टिप्पणियाँ:

mridula pradhan ने कहा…

bahut achchi lagi......

Manoranjan Manu Shrivastav ने कहा…

हर दिल आह भरता था |
हर सख्स फ़ना होता था |
हर नज़र राह तकती थी |
हर जान हमपर मरती थी |
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