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लब तक खींचा अरु छोड़ गयी

Written By नीरज द्विवेदी on गुरुवार, 21 जुलाई 2011 | 9:15 pm


मैं जोकर था क्या सर्कस का,
देखामुस्काया अरु भूल गयी।
या तीर था तेरे तरकश का,
लब तक खींचा अरु छोड़ गयी॥

मैं तो अंकुर हूँ जीवन का,
संसार तेरा भर देता मैं।

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1 टिप्पणियाँ:

Unknown ने कहा…

Bahut kam shabdon mein bahut jabardast abhivyakti.. Badhai..

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