घुसते ही घर में कानों में ,
सरगम स्वर में सुर-ताल बही |
खिड़की के एक झरोखे से ,
झन झन पायल झनकार रही |
कमरे में झांका तो देखा,
थी राजकुमारी नाच रहीं ||
बैठक के एक किनारे से ,
सप्तम कानों में टकराया |
झांझर तबला, मटका गिटार -
का मिला जुला सा स्वर आया ||
देखा तो कुंवर कन्हैया जी,
अपनी ही धुन में खेल रहे |
चिमटा थाली,चम्मच गिलास,
पर वे रियाज़ थे पेल रहे ||
लो अहा ! किचन से ये कैसी,
खुशबू सी तिरती आई है |
साथ साथ उनके स्वर की-
मृदु-वीणा सी लहराई है ||
कोई पूछे मुझसे आकार ,
इस दुनिया में स्वर्ग कहीं है ?
यह सुनकर लगता है ऐसा,
स्वर्ग यहीं है स्वर्ग यही है ||
5 टिप्पणियाँ:
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
बहुत ही खुबसूरत शब्दों का समायोजन....
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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सुन्दर रचना |
बधाई |
Bahut hi man-bhavan rachna Gupta Ji.. Badhai..
Bahut sundar .. Bahut sundar
धन्यवाद, अनिल जी, रविकर जी,नीरज एवं विद्या जी....
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Thanks for your valuable comment.