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ये तेरा दरबार न था

Written By नीरज द्विवेदी on मंगलवार, 26 जुलाई 2011 | 8:09 pm


यूँ जीने की ख्वाहिस ना थी,
यूँ हँसने का एतबार न था,
बस इक पगली के जाने पर,
मुझे रोने से इनकार...ये तेरा दरबार न था (Complete)


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