''खिलाफ़त कर के भी देखो ''
१३ जुलाई २०११ की शाम को हुए तीन धमाकों ने मुंबई सहित पूरे देश को फिर से दहला डाला .मुम्बईकरो ने साहस के साथ इसका मुकाबला किया और घायलों को अस्पताल पहुँचाया .मुम्बईकरो ने हर आतंकी हमले व् बम-विस्फोट का इसी हौसले के साथ डटकर मुकाबला किया है पर ''१४ जुलाई २०११ के ''अमर उजाला ''दैनिक समाचार पत्र में पृष्ठ -१४ ''पर प्रकाशित ''दिल में टीस;पर नहीं टूटा मुंबई का हौसला ''खबर में उल्लिखित एक बात ने मुझे सोचने पर विवश कर दिया .खबर में लिखा था कि-''मुंबई के लोगों की जिन्दगी फिर से पटरी पर लौट रही है .सुबह लोग अपने दफ्तर जाते दिखे.कबूतरखाना के सामने एक स्कूल में बच्चों के चेहरे पर दहशत का नामोनिशां तक नहीं था .बच्चों का कहना था कि उन्हें धमाकों के बारे में मालूम है लेकिन वे डरते नहीं हैं .''
यही बात सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर इतनी शीघ्र मुंबई सामान्य कैसे हो गयी ?क्या बम-विस्फोंटों को उसने अपनी नियति समझ लिया है ?२० से ज्यादा हमारे जैसे इंसानों के जिस्म के टुकड़े-टुकड़े हो गए .ठीक है हम दहशतगर्दों को ये जवाब देना चाहते हैं कि हम तुम्हारे हमलों से डरते नहीं हैं पर हम अगर एक सामान्य इन्सान है तो ऐसे मौके पर हमारे भीतर डर और आक्रोश दोनों ही प्रकट होने चाहियें .
मुंबई हमलों के अगले दिन अपने दैनिक कार्यों पर न जाकर बम-विस्फोटों का अपने स्तर से शांतिपूर्ण विरोध करना चाहिए था .उन्हें प्रशासन व् सरकार को यह दिखाना चाहिए था कि हमारी जान इतनी भी सस्ती नहीं कि हम बम विस्फोटों की भेंट चढ़ने हेतु फिर निकल पड़ें .उन्हें हर सार्वजानिक कार्य का बहिष्कार कर यह सन्देश देना चाहिए था कि सत्तासीन लोगों सावधान हो जाओ -हम अब अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं .आप सत्ता भोग करने हेतु मंत्री पदों पर नहीं बैठाये गए हैं .हमें अपनी सुरक्षा की गारंटी चाहिए तभी हम सामान्य रूप से सार्वजानिक कार्यों में लग पाएंगे .हम आप से सवाल करते हैं अपनी सुरक्षा को लेकर -अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर .आप क्या कर रहे हैं ?
प्रशासनिक लापरवाही का विरोध तो मुम्बईवासियों को करना ही चाहिए था -जिसका एकमात्र स्वरुप हर सार्वजानिक कार्य का बहिष्कार था .हौसला टूटना नहीं चाहिए पर आक्रोश भी ऐसे समय पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए जिससे सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने वालों की कुम्भकर्णी नींद टूटे वरना सुन्न हुए अंग की भांति हमारी भावनाएं भी सुन्न पड़ जाएँगी .
''मौत के आगे घुटने मत टेको ;
जिन्दगी को मौत बनने से भी रोको ;
हर हालत को सह जाना होशयारी नहीं
एक बार तो खिलाफ़त करके भी देखो .
शिखा कौशिक
5 टिप्पणियाँ:
''मौत के आगे घुटने मत टेको ;
जिन्दगी को मौत बनने से भी रोको ;
हर हालत को सह जाना होशयारी नहीं
एक बार तो खिलाफ़त करके भी देखो .
bahut badhiya ||
मौत के आगे घुटने मत टेको ;
जिन्दगी को मौत बनने से भी रोको ;
हर हालत को सह जाना होशयारी नहीं
एक बार तो खिलाफ़त करके भी देखो .
bahut badhiya ||
bilkul sahi likha hai Shikha atyachaar sahna bhi galat sandesh deta hai chuppi ko log kamjori samajh lete hain.kisi bhi roop me atyachar ke khilaaf aavaj uthayen.varna humaari sarkar to yahi kahti rahegi "humaare dharye ki pareeksha mat lo"hell to humara dherye.
आप सभी का शुक्रिया इस आलेख पर अपना दृष्टिकोण प्रकट करने हेतु .साभार
एक बार तो खिलाफ़त करके भी देखो ... Jago bharat Jaago
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Thanks for your valuable comment.