ओ ऋत
ओमकार में जो रत रहे वह औरत |
औरत हमेशा ओमकार में रत रहती है |
औरत कभी भी कोई कार्य करती है तो बड़े ही ध्यान से करती है |
जिसमे एक तरफ वह ओमकार को साध के चलती है |
और एक तरफ संसार के कार्य को साध के चलती है |
जैसे अभी कुछ दिन पहले तक औरत सात-सात घड़े भी सिर पर उठती थी |
एक गोद में भी घड़ा लेती थे, एक गोद में बच्चा भी लेती थी |
और साथ वाली के साथ बात भी करती चलती थी |
वह पूर्णत: ध्यान में स्थित होकर चलती थी और घड़े भी नहीं गिरते थे |
और उसको पता भी नहीं चलता था की उसने इतना वज़न उठा रखा है |
क्यूंकि वह ओमकार में ही स्थित थी |
इसलिए वह औरत है |
ओमकार में जो रत रहे वह औरत |
औरत हमेशा ओमकार में रत रहती है |
औरत कभी भी कोई कार्य करती है तो बड़े ही ध्यान से करती है |
जिसमे एक तरफ वह ओमकार को साध के चलती है |
और एक तरफ संसार के कार्य को साध के चलती है |
जैसे अभी कुछ दिन पहले तक औरत सात-सात घड़े भी सिर पर उठती थी |
एक गोद में भी घड़ा लेती थे, एक गोद में बच्चा भी लेती थी |
और साथ वाली के साथ बात भी करती चलती थी |
वह पूर्णत: ध्यान में स्थित होकर चलती थी और घड़े भी नहीं गिरते थे |
और उसको पता भी नहीं चलता था की उसने इतना वज़न उठा रखा है |
क्यूंकि वह ओमकार में ही स्थित थी |
इसलिए वह औरत है |
4 टिप्पणियाँ:
इस प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई ||
Bahut Achhi Prastuti..
aurat ka sir garva se uncha karti post aabhar.
sundar
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Thanks for your valuable comment.