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कुंडलिया छंद ----- दिलबाग विर्क

Written By दिलबागसिंह विर्क on मंगलवार, 8 मार्च 2011 | 3:19 pm

घर बैठी सरपंचनी , चौधर कर रहा पति
नारी स्वतन्त्रता की , देखो क्या हुई गति . 
देखो क्या हुई गति , दोयम दर्जा बरकरार 
बने कानून मगर , नहीं मिल रहा अधिकार .
कहता ' विर्क ' सबसे , न आवाज़ उठाई अगर 
 नारी के लिए होगा , चूल्हा - चौका और घर .

       ----- sahityasurbhi.blogspot.com 
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1 टिप्पणियाँ:

shyam gupta ने कहा…

सत्य बचन महाराज....

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