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षटपदीय ----- दिलबाग विर्क

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on गुरुवार, 7 अप्रैल 2011 | 8:11 pm

बुराई जीत रही है , अच्छाई की हार
उल्टे पड़े सब पासे ,कलयुग की है मार .
कलयुग की है मार ,रावण राम पे भारी
धर्म - कर्म से यहाँ , जीतती दुनियादारी .
सीखना मानवता , तुम सीखना अच्छाई 
कहता ' विर्क ' सबसे , जगत से मिटे बुराई .

                      * * * * *
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7 टिप्पणियाँ:

shyam gupta ने कहा…

सुन्दर...यह कुन्डली छंद है....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जीत रहा अन्याय है, हुई न्याय की हार।
उल्टे पड़े सब पासे,कलयुग की है मार।।
कलयुग की है मार,सत्य पर मिथ्या भारी।
झूठ बोल कर आज जीतती दुनियादारी।।
छोड़ो सभी बुराई, सीख लो कुछ अच्छाई।
कहत 'विर्क' कविराय ,जगत से मिटे बुराई।।
--
आदरणीय विर्क जी!
आपकी कुण्डलिया को शुद्ध कर दिया है!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आदरणीय विर्क जी!
हाँ में हाँ मिलाने वाले बहुत मिलेंगे यहाँ!
--
डॉ. श्याम गुप्ता ने भी वही किया है!

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

dr. mayank ji
sorry
aapki bnaai kundli men dohe ka pahla shabd raule ke antim shbd se nhin mil rha ,ese men aapke dvara snshodhit rachna bhi kundli nhin
vaise mujhe kundli kahne ki jidd bhi nhin ,isilie maine ise shatpadiy kaha tha. aapse nivedn hai ki aap ise kundliy ki ksauti par n janchen .
dhnyvad

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हाँ विर्क जी आपने ठीक लिखा है!
इस भारी त्रुटि के लिए तो क्षमा माँगने में मुझे कोई आपत्ति नही है!
आपकी रचना शुद्ध करते-करते मैं भूल ही गया कि आपने कुण्डलिया लिखी थी यह!
फिर से सही कर देता हूँ-
--
मिटे बुराई जगत से, अच्छा हो संसार।
घटी प्रीत की रात सब,कलयुग की है मार।।
कलयुग की है मार,सत्य पर मिथ्या भारी।
झूठ बोल कर आज जीतती दुनियादारी।।
छोड़ो सभी बुराइ, सीख लो कुछ अच्छाई।
कहत 'विर्क' कविराय ,जगत से मिटे बुराई।।
--
विर्क जी!
आपने अच्छा किया जो मुझे इस गलती के बारे में बता दिया! मैं भी आपकी ही भाँति एक इन्सान ही तो हूँ!
--
माता के गर्भ से तो सीखकर कोई भी नहीं आता! मेरा सुझाव है कि आप थोड़ा सा काव्यशास्त्र को आनन्द लेने के बहाने से ही पढ़ जरूर लिया करें।
--
बुरा मत मान जाना-
"ज्ञानी से ज्ञानी लड़े तो ज्ञान सवाया होय!
मूरख से मूरख लड़े तो तुरत लड़ाई होय!!"

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

पहली टिप्पणी में वर्तनी की
कुछ गलती हो गई थी!
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हाँ विर्क जी आपने ठीक लिखा है!
इस भारी त्रुटि के लिए तो क्षमा माँगने में मुझे कोई आपत्ति नही है!
आपकी रचना शुद्ध करते-करते मैं भूल ही गया कि आपने कुण्डलिया लिखी थी यह!
फिर से सही कर देता हूँ-
--
मिटे बुराई जगत से, अच्छा हो संसार।
घटी प्रीत की रीत सब,कलयुग की है मार।।
कलयुग की है मार,सत्य पर मिथ्या भारी।
झूठ बोल कर आज जीतती दुनियादारी।।
छोड़ो सभी बुराइ, सीख लो कुछ अच्छाई।
कहत 'विर्क' कविराय ,जगत से मिटे बुराई।।
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विर्क जी!
आपने अच्छा किया जो मुझे इस गलती के बारे में बता दिया! मैं भी आपकी ही भाँति एक इन्सान ही तो हूँ!
--
माता के गर्भ से तो सीखकर कोई भी नहीं आता! मेरा सुझाव है कि आप थोड़ा सा काव्यशास्त्र को आनन्द लेने के बहाने से ही पढ़ जरूर लिया करें।
--
बुरा मत मान जाना-
"ज्ञानी से ज्ञानी लड़े तो ज्ञान सवाया होय!
मूरख से मूरख लड़े तो तुरत लड़ाई होय!!"

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

mayank ji dhnyvad
aapke kundliy aur apne kundliy men milan kar raha hoon
12 men char charn to aapne thik btae , iske lie dhnyvad shesh 8 kyon bdle gae smjhne ka paryas kar rha hoon .aapn ne inhe kyon bdla ydi yeh bta dete to mera kam aasan ho jata .aasha hai rasta dikhaenge

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