भय से ही भक्ति होती है | बिना भय के भक्ति नहीं होती है | भक्ति के लिए भय जरूरी है | जैसे हम किसी अनजान रास्ते से जाते हैं तो वहां पर अनायास ही हमको भय लगता है और उस भय को दूर करने के लिए हम हनुमान चालीसा पड़ते हैं, या फिर सीटी बजाते हैं और अपने आपको को यह आहसास दिलाते हैं की मैं अभी हूँ | यानी अपने आपको अपने आपसे एक करते हैं जिससे उसको बल मिलता है | इसलिए भक्ति करने के लिए भय जरूरी है | जब तक हम किसी से भयभीत होते हैं तभी तक हम उसकी भक्ति करते हैं और जब हमारा भय दूर हो जाता है तो फिर हम उसकी निंदा करते हैं | इसलिए भक्ति को जिन्दा रखने के लिए हमें अज्ञात भय को जिन्दा रखना पड़ेगा | क्यूंकि जब तब भय नहीं होगा भक्ति नहीं होगी | तो जो लोग भी भक्ति करवाना चाहते हैं तो फिर वह सबसे पहले भय बनाते हैं और भय बनाने के लिए उनको अपना बल दिखाना पड़ता है क्यूंकि बल ही तो भय बनाता है | बल नहीं होगा तो भय भी नहीं होगा | इसलिए लोक में शरीर को बलवान बनाने का यह सबसे बड़ा कारण है | क्यूंकि पहले आदमी किसी का शरीर ही देखता है और उस शरीर के हिसाब से किसी से बात आगे करता है | वह देखता है की शरीर से तो यह दुबला पतला है तो फिर उस पर चढ़ बैठता है और अगर देखता है की यह तो तगड़ा है तो फिर वह उससे मिमयाते हुए बात करता है | इसलिए लोग शरीर बनाते हैं जिससे वह दुसरे को भयभीत कर सकें | और जो लोग शरीर नहीं बनाते तो फिर वह तगड़े लोगों को अपना पहरेदार बना लेते हैं | यह पहरेदारी भी भय को फ़ैलाने के लिए है | इसलिए जहां भी भक्ति है वहां पहले भय जरूर है | और बल से ही भय होता है तो फिर वहां बल भी है | बल पहले बनाया जाता है फिर उस बल से किसी को भयभीत किया जाता है फिर उस भय से वह भक्ति करता है |
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2 टिप्पणियाँ:
darna bura nahin hai ||
सुन्दर एवं प्रभावी प्रस्तुति ||
darna bura nahin hai ||
सुन्दर एवं प्रभावी प्रस्तुति ||
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Thanks for your valuable comment.