धर्म कहते हैं ड्यूटी को | यानी की करनी ही करनी है | मना नहीं कर सकते हैं | चाहे आंधी हो, तूफान हो कुछ भी हो वह करना ही है, वह धर्म होता है |
अर्थ कहते है धन को जो की धर्म को ख़त्म कर देता है | किसी को उसके धर्म से गिराना हो, तो उसे धन दे दो, वह अपने धर्म से गिर जाएगा ,जैसे कहीं भी काम नहीं बन रहां है, तो धन दे दो वह अपने धर्म को छोड़ देगा पहले धन देने वाले का काम करेगा | यह है अर्थ |
काम कहते हैं ईक्षा को जो की धन को ख़त्म कर देती है, जैसे कोई वस्तु पसंद आयी तो, उसे हम धन से खरीद लेते हैं, और अगर धन न हो तो उसे फिर छीन लेते हैं | यह है काम | जब तक काम पूरा नहीं होता है तब तक मोक्ष का द्वार नहीं खुलता है | यही है काम |
मोक्ष यानी म ओ क्ष | यानी जब मन की रक्षा ओमकार से होती है उसे मोक्ष कहते हैं | सन्यासी को अपने मन की रक्षा करनी है की उसका मन भटके नहीं | जब यह अपने मन की रक्षा ओमकार से करता है | यानी ओमकार का जप करता है, तो उसे मोक्ष कहते हैं |
1 टिप्पणियाँ:
भ्रमित भाव.....
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Thanks for your valuable comment.